(गत ब्लॉगसे आगेका)
देखो ! आवश्यकता और कामना दो चीज हैं । आवश्यकता पूरी होनेवाली होती है, पर कामना कभी पूरी नहीं होती । कन्यादान करना आवश्यक है, पर उसके लिये चिन्ता करना आवश्यक नहीं है । कन्याको जहाँ जाना है,वहाँका प्रबन्ध अपने-आप बैठेगा । आपको उद्योग करना है,चिन्ता नहीं करनी है । कर्म करनेमें आपका अधिकार है,फलमें अधिकार नहीं है‒‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ (गीता २ । ४७) । कन्यादानके लिये उद्योग करना आपका काम है, । कन्यादान हो ही जाय‒यह आपके हाथकी बात नहीं है ।
जैसे, भूख लगी तो यह पेटमें अन्नकी ‘आवश्यकता’ है और उसमें स्वाद चाहना कि अमुक भोजन मिले‒यह‘कामना’ है । आवश्यकता पूरी होती है, पर कामना आजतक किसीकी पूरी नहीं हुई । किसीके भी जीवनमें ऐसा नहीं हुआ कि सब कामनाएँ पूरी हो गयी हों । परन्तु आवश्यकताका विधान है कि वह पूरी होती है । इस तरह एक आवश्यकता होती है और एक कामना होती है । इनको आप ध्यानसे सुनो और धारण करो । वर्षोंतक मेरेको यह बात समझमें नहीं आयी । व्याख्यान देता था और दिया भी वर्षोंतक, पर आवश्यकता और कामना दो हैं‒यह बात मेरेको बहुत देरीसे मिली । मेरेको ऐसी बातें बहुत कठिनतासे मिली हैं । इनके मर्मको समझनेमें मेरेको जोर पड़ा है और समय लगा है । यह आपको इसलिये कहा है कि आप इस बातका कुछ आदर करो । इसमें कोई आत्मश्लाघा नहीं, कोई महिमा नहीं, कोई विशेषता नहीं, नहीं तो पहले ही जान लेता । पर नहीं आयी अक्लमें ! ऐसे कई झंझट थे, जो गीतासे खुले हैं । परन्तु आप जानना चाहो तो बहुत सुगमतासे जान सकते हो । बहुत सरल, सीधी-सादी बातें हैं ।
आवश्यकता और कामना क्या है ? मूलमें आवश्यकता तो है परमात्माकी और कामना है संसारकी । यह मूल बात है । हम सदा जीते रहें, हम जानकार बनें, हम सदा सुखी रहें--यह आवश्यकता है; क्योंकि आपकी यह चाहना वास्तवमें सत्-चित्-आनन्दघन परमात्माकी है । परन्तु संसारकी जितनी आवश्यकता मानते हो, जितनी चाहना करते हो, वह सब-की-सब कामना है । ये दो भेद मेरेको मिले तो बड़ी प्रसन्नता हुई मनमें कि आज तो एक काँटा निकल गया भीतरसे ! आवश्यकता और चीज है, कामना और चीज है । अँग्रेजीमें हमने want और desire‒ये दो शब्द सुने हैं । मैंने अच्छे पढ़े-लिखोंसे पूछा कि इन दो शब्दोंमें क्या भेद है, पर वे ठीक तरहसे बता नहीं सके । जैसे मैं कहता हूँ कि आवश्यकता केवल परमात्माकी है और इच्छा केवल संसारकी है । पर इतना साफ नहीं बताया अँग्रेजी पढ़े-लिखोंने । आवश्यकता पूरी होनेवाली होती है, वह मिटनेवाली हो ही नहीं सकती । परमात्मतत्त्वकी जो आवश्यकता है और हमारी जो कमी है, वह पूरी हुए बिना कभी मिट नहीं सकती और कामना कभी पूरी नहीं हो सकती‒यह नियम है । नियमका भंग होता हो तो बताओ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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