(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप विचार करो कि क्या अपनी चाहनासे हम जी रहे हैं । चाहनेमात्रसे कोई जी नहीं सकता । जीनेके उपायके लिये मैं मना नहीं करता । रोटी खाओ, दवाई लो, संयमसे रहो‒यह बात मैं कहता हूँ । परन्तु हम जीते रहें‒यह हमारे हाथकी बात नहीं है । इसमें आपको क्या बाधा लगती है ? पूछो ।
आप सोचते हैं तो उलटा सोचते हैं कि यह चुप कैसे हो जाय ? ऐसा प्रश्न पूछें कि यह बोल नहीं सके । यह नहीं सोचते कि बातको काममें कैसे लायें ? जैसे सरकारी कानूनके विषयमें सोचते हैं कि इस कानूनसे कैसे बचें ? कैसे झूठ-कपट करें ? कैसे चकमा दें ? यही बर्ताव आप दूसरोंसे करते हैं । ऐसा करना ठीक नहीं है । आप ऐसा सोचो कि यह ममता कैसे मिटे ? यह कामना कैसे मिटे ? इसके लिये सोचना होता है, चेष्टा नहीं होती । वस्तुको ज्यों-की-त्यों रहने दो,एक कौड़ी भी खर्च मत करो; परन्तु ‘यह मेरी नहीं है’ इतना मान लो । आस्तिकके लिये बहुत सरल उपाय है कि ‘यह सब भगवान्की है’ । सच्ची बात है । आस्तिक आदमी सब वस्तुओंको भगवान्की मानते ही हैं । अब बोलो, ममता छूटेगी कि नहीं ? हमारी है ही नहीं, ठाकुरजीकी है । अब वस्तु चली जाय तो ठाकुरजीकी वस्तु चली गयी । रक्षा करना, ठीक तरहसे रखना हमारा काम है; क्योंकि हम ठाकुरजीके हैं तो हम ठाकुरजीकी चीजको निरर्थक नष्ट कैसे होने देंगे !
ठाकुरजीके विधानके अनुसार खर्च करेंगे; क्योंकि ठाकुरजीकी चीज है । कितना सुगम उपाय है ! इस बातको भीतरसे पक्का मान लो । अब बेटा मर जाय तो हम चिन्ता क्यों करें ? भगवान्का बेटा मरा । आप बिलकुल गिनाओ कि हमारे इतने बेटे हैं । गिनानेमें क्या हर्ज हुआ । आप केवल मेरापन छोड़ दो । उनका पालन-पोषण करो, रक्षा करो । अपनी जिम्मेवारीका पालन करो । भगवान्की दी हुई ड्यूटी है । गाड़ीमें बैठनेपर आप कहते हैं कि यह हमारा डिब्बा है,पर गाड़ीसे उतरनेके बाद आप कभी चिट्ठी देकर पूछते हो कि हमारा डिब्बा कैसे है ? अतः व्यवहार करनेमें कोई बाधा नहीं लगती । व्यवहार सुचारुरूपसे करो । जैसा अभी करते हो, उससे भी सुचारुरूपसे करो । हमारी चीजकी परवाह नहीं, पर अब तो प्रभुकी चीज है ! उसकी अच्छी तरहसे रक्षा करो ।
मैं आपका दुःख मिटानेके लिये कहता हूँ । चीज मिटाने, नष्ट करनेके लिये नहीं कहता हूँ । चीज छोड़कर साधु हो जाइये‒यह नहीं कहता हूँ । दुःख, सन्ताप, अभाव,व्याकुलता, हलचल मिटानेके लिये कहता हूँ । वही घर है वही स्त्री है, वही परिवार है, वे ही रुपये हैं और वैसे ही आप हो, कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, केवल आपकी चिन्ता मिट जायगी ! परन्तु ममता, कामना रखोगे तो यह चिन्ता, हलचल, दुःख,सन्ताप कभी मिटनेका है ही नहीं । ममता, कामनाके रहते चिन्ता, हलचल न हो‒यह असम्भव बात है । मनमें इच्छा रखे कि ऐसा हो और ऐसा न हो तो हलचल होगी ही ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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