(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒तत्त्वका बोध होनेसे पहले ममता, कामना कैसे मिटेगी ?
स्वामीजी‒तत्त्वका बोध होनेसे ममता मिट जायगी और ममता मिटनेसे तत्त्वका बोध हो जायगा । खुशी आये,ज्यों कर लो । आपको जो सुगम पड़े वह काम कर लो । कामना-ममताके रहते-रहते तत्त्वबोध हो जायगा ! आप ध्यान दो मेरी बातपर । गीताकी बात है‒
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ॥
(४ । ३६)
सम्पूर्ण पापियोंसे भी जो अधिक पापी हो, वह भी ज्ञानरूपी नौकासे पापोंको तर जायगा । अतः पापी-से-पापी भी ज्ञानका अधिकारी हुआ कि नहीं ? कामना तो दूर रही,पापी बताया है । मनुष्य कामनाके कारण ही पाप करता है (गीता ३ । ३६-३७) । कामनासे होनेवाले बड़े-बड़े पापोंसे आप तर जाओगे । तात्पर्य है कि ज्ञान पहले भी मिल सकता है और कामना-ममताके त्यागसे भी मिल सकता है‒
विहाय कामान्यः सर्वान् पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥
(गीता २ । ७१)
‒ये दोनों प्रमाण गीतामें हैं । कामनाके विषयमें मेरेको ऐसी बहुत बातें याद हैं । इस विषयमें मैंने बहुत खोज की है और कर रहा हूँ ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
अमृत-बिन्दु
भगवान्की आवश्यकताका अनुभव करना ही प्रार्थना है ।
असत् वस्तुका लोभ तो असत् वस्तुकी प्राप्तिमें बाधक है, पर सत्का लोभ सत्की प्राप्तिमें साधक है ।
शरीर निर्वाह-सम्बन्धी हरेक कार्यमें यह सावधानी रखनी चाहिये कि समय और वस्तु कम-से-कम खर्च हों ।
‘पर’ (प्रकृति) की अधीनता पराधीनता है और ‘परकीय’ (भोगों) की अधीनता परम अधीनता है । ‘स्व’ (स्वरूप) की अधीनता स्वाधीनता और ‘स्वकीय’ की अधीनता परम स्वाधीनता है ।
सिनेमा या टी॰वी॰ देखनेसे चार हानियाँ होती हैं‒१. चरित्रकी हानि २. समयकी हानि ३. नेत्र-ज्योतिकी हानि और ४. धनकी हानि ।
कुछ करनेसे प्रकृतिमें स्थिति होती है और कुछ न करनेसे परमात्मामें स्थिति होती है ।
जैसे जलके स्थिर (शान्त) होनेपर उसमें मिली हुई मिट्टी अपने-आप नीचे बैठ जाती है, ऐसे ही वाणी-मन-बुद्धिसे चुप (शान्त, क्रियारहित) होनेपर सब विकार अपने-आप शान्त हो जाते हैं, अहम् गल जाता है और वास्तविक तत्त्वका अनुभव हो जाता है ।
‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे
|