(गत ब्लॉगसे आगेका)
शरीरमें मैं-पन और मेरा-पनका व्यवहार होता है । इन्द्रियोंमें भी मैं-पन और मेरा-पनका व्यवहार होता है । जैसे, इन्द्रियाँ मेरी हैं, आँख मेरी है, कान मेरा है, नाक मेरी है । आँख ठीक नहीं हो तो मैं काना हो गया, आँख नहीं है तो मैं अन्धा हो गया । अपनेको आँखमें रखनेसे मैं काना, अन्धा हो गया । संसारमें मैं-पनका व्यवहार कम होता है और मेरापनका व्यवहार मुख्य होता है । शरीरमें मैं-पनका व्यवहार मुख्य होता है और मेरा-पनका व्यवहार कम होता है । मन-बुद्धिमें मेरा-पनका भी व्यवहार होता है और मैं-पनका भी । अहंकारमें भी ममता होती है, पर वह ममता गौण दीखती है और अहंता मुख्य दीखती है । अहंकारको अपनेमें स्थापन किया है इसलिये अहंकार मेरा दीखता है । मेरा अहंकार क्या है ? कि अहंकारपर टक्कर लगी तो मेरेपर टक्कर लगी ! यह बात बहुत सूक्ष्म है ।
कर्मयोग मुख्यरूपसे ममताको मिटाता है और ज्ञानयोग मुख्यरूपसे अहंताको मिटाता है । ममता मिटनेसे अहंता और अहंता मिटनेसे ममता मिट जाती है । दोनों साथ-साथ मिटते हैं ।
शरीर, इन्द्रियाँ, अन्तःकरण, प्राण, मन, बुद्धि, विद्या,पद, योग्यता, अधिकार‒ये सब घुल-मिलकर एक ‘मैं’ है ।इस मिले हुए ‘मैं’ को ठीक-ठीक देखे तो ठीक ज्ञान हो जाता है अर्थात् शरीरादि पदार्थ मेरेसे अलग हैं, मेरा स्वरूप नहीं हैं‒ऐसा दीखने लग जाता है । घुले-मिले ‘मैं’ को कुछ नहीं दीखता । वह तो बिलकुल अन्धा है !
गीतामें कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग‒इन तीनोंमें अहंता-ममताके त्यागकी बात आयी है; जैसे,कर्मयोगमें‒
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ।
(२ । ७१)
ज्ञानयोगमें‒
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोध परिग्रहम् ।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥
(१८ । ५३)
भक्तियोगमें‒
निर्ममो निरहङ्कार समदुःखसुखः क्षमी ।
(१२ । १३)
सन्तोंने इसको मैं-मेरीका त्याग कहा है । मैं-पन और मेरा-पनका त्याग ही वास्तवमें त्याग है । वस्तुओंको,पदार्थोंको छोड़कर चले जाना त्याग नहीं है । यह त्याग तो मरनेपर होता ही है ! मरनेपर शरीर, घर आदि याद ही नहीं रहते । पहले जन्मकी कोई भी बात याद नहीं रहती । परन्तु यह त्याग नहीं है । यह तो केवल मैं-पन और मेरा-पनको बदल दिया, यहाँसे वहाँ रख दिया । जैसे, ‘मैं गृहस्थ हूँ’‒इसको उठाकर ‘मैं साधु हूँ’‒इसमें रख दिया उसको । परन्तु बदलनेसे मुक्ति थोड़े ही हो जायगी ! मुक्ति तो सम्बन्ध-विच्छेदसे होगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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