(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘मैं-पन’ घुले-मिलेका नाम है । इस घुले-मिलेको दूर करनेकी सार बात बताता हूँ । मेरी एक धुन है कि सुगमतासे तत्त्वका बोध हो जाय ! मैं-पन प्रकाशित होता है । मैं-पनका भान होता है । मैं-पनसे आप बिलकुल अलग हैं‒यह बात सीधी बताता हूँ । वास्तवमें मैं-पन है नहीं । यदि अहंकार होता तो मनुष्य निरहंकार हो ही नहीं सकता । अतः अहंकार है ही नहीं । संसारमें मैं-पनके समान झूठा, असत्य कुछ है ही नहीं ! संसारमें यदि कोई फालतू चीज है, महान् अनर्थ करनेवाली चीज है, तो वह है ‘मैं-पन’ ! अहंता सबसे फालतू,निकम्मी, महान् अनर्थ करनेवाली है । जैसे, व्यवहारमें रुपया सबसे रद्दी है । मैलेसे, पेशाबसे भी रद्दी है । ऐसे ही यह अहंता सबसे रद्दी है; और बिलकुल है ही नहीं । सूर्यमेंसे प्रकाश और उष्णताको कोई निकाल सकता है क्या ? अग्रिमेंसे गरमी और प्रकाशको कोई निकाल सकता है क्या ?नहीं निकाल सकता । निकलती वही चीज है, जो दूसरी होती है । मनुष्य निर्मम और निरहंकार हो सकता है, इससे सिद्ध होता है कि वास्तवमें उसमें अहंता-ममता है नहीं । अतः मैं-पन और मेरा-पन केवल कल्पना है ।
स्वरूप सच्चिदानन्दघन परमात्मा है और मेरा क्या है ? ईश्वर । चेतनमें मैं-पन होगा तो मैं-पन उड़ जायगा और चेतन रह जायगा । ईश्वरमें मेरा-पन होगा तो मेरा- पन उड़ जायगा और ईश्वर रह जायगा । ज्ञानयोगकी दृष्टिसे मैं शुद्ध,बुद्ध, नित्य चेतन हूँ और भक्तियोगकी दृष्टिसे मेरे केवल भगवान् हैं‒ऐसा मान ले तो यह अहंता-ममता उड़ानेकी बहुत बढ़िया प्रक्रिया है ।
मेरे केवल भगवान् हैं और कोई मेरा नहीं है‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ कुटुम्बी, शरीर, इन्द्रियाँ, मन,बुद्धि, प्राण आदि कोई भी मेरा नहीं है । ‘भगवान् मेरे हैं’‒इस बातको तो कई मान लेंगे, पर ‘दूसरा कोई मेरा नहीं है’‒इस बातको नहीं मानेंगे । दूसरा कोई मेरा नहीं है‒इस बातको नहीं माननेसे अनन्य भक्ति नहीं होती । महिमा जितनी है,वह सब अनन्य भक्तिकी ही है । भगवान्ने कहा है कि अनन्य भक्तोंके लिये मैं सुलभ हूँ‒‘तस्याहं सुलभः’ (गीता ८ । १४)और उनका योगक्षेम मैं वहन करता हूँ‒‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’(गीता ९ । २२) ।
मनुष्योंने भगवान्को घरका एक सदस्य मान रखा है । जैसे माँ-बाप हैं, भाई-बन्धु हैं, स्त्री-पुत्र हैं, ऐसे एक भगवान् भी हमारे हैं‒इस तरह भगवान्को भी एक सदस्य मान रखा है । आज मनुष्य स्त्री-पुत्र-जितना भी भगवान्को अपना नहीं मानते । अगर परिवार भूल जाय, कोई मर जाय तो दुःख होता है, पर भगवान् भूल जायँ तो कोई परवाह ही नहीं होती ! भगवान्को तो साधारण चीज मान रखा है । कसौटी कसके देखो कि हम भगवान्का कितना आदर करते हैं, तब पता लगेगा । भगवन्नाम भूल गये तो कोई बात नहीं है, पर पाँच रुपये भी कहीं भूल गये तो खटकेगा । भगवान्को याद किये बिना समय बरबाद हो गया‒यह खटकता ही नहीं !समय तो जितना मिला है, उससे एक क्षण भी ज्यादा नहीं मिलेगा, पर रुपया तो और भी मिल जायगा । समय तो सब खर्च हो रहा है और खर्च होनेपर मरना पड़ेगा । परन्तु रुपये सब खर्च हो जायँ तो मरना थोड़े ही पड़ेगा ! समय आपके जीवनका आधार है, पर आपका इधर खयाल ही नहीं है ! बेहोशीमें पड़े हैं । कितनी नीची वृत्ति हो गयी, हद हो गयी ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे
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