(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒देवता और भगवान्के शरीरमें क्या अन्तर है ?
उत्तर‒देवताओंका शरीर भौतिक और भगवान्का अवतारी शरीर चिन्मय होता है । भगवान्का शरीर सत्-चित्-आनन्दमय, नित्य रहनेवाला, अलौकिक और अत्यन्त दिव्य होता है । अतः देवता भी भगवान्को देखनेके लिये लालायित रहते हैं ( गीता ११ । ५२) ।
प्रश्न‒देवलोक और भगवान्के लोकमें क्या अन्तर है ?
उत्तर‒देवलोक क्षय होनेवाला, अवधिवाला और कर्म-साध्य है । परन्तु भगवान्का लोक (धाम) अक्षय,अवधिरहित और भगवकृपासाध्य है ।
प्रश्न‒मनुष्य स्वर्ग पानेकी और देवता मर्त्यलोकमें मनुष्यजन्म पानेकी अभिलाषा क्यों करते हैं ?
उत्तर‒मनुष्य सुख-भोगके लिये ही स्वर्गलोककी इच्छा करते हैं । मनुष्य-शरीरसे सब अधिकार प्राप्त होते हैं । मोक्ष, स्वर्ग आदि भी मनुष्य-शरीरसे ही प्राप्त होते हैं । देवता भोगयोनि हैं । वे नया कर्म नहीं कर सकते । अतः वे नया कर्म करके ऊँचा उठनेके लिये मर्त्यलोकमें मनुष्यजन्म चाहते हैं । जैसे राजस्थानके लोग धन कमानेके लिये दूसरे नगरोंमें तथा विदेशमें जाते हैं, ऐसे ही देवता ऊँचा पद प्राप्त करनेके लिये मृत्युलोकमें आना चाहते हैं ।
प्रश्न‒मनुष्यजन्म देवताओंको भी दुर्लभ क्यों है ?
उत्तर‒मनुष्यशरीरमें नये कर्म करनेका, नयी उन्नति करनेका अधिकार है । इसमें मुक्ति, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति आदि सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है । परंतु देवता भोगपरायण रहते हैं और केवल पुण्यकर्मोंका फल भोगते हैं । उनको नये कर्म करनेका अधिकार नहीं है । अतः मनुष्यशरीर देवताओंको भी दुर्लभ है ।
प्रश्न‒भगवान्के दर्शन करनेपर भी देवता मुक्त क्यों नहीं होते ?
उत्तर‒मुक्ति भावके अधीन है, क्रियाके अधीन नहीं । देवता केवल भोग भोगनेके लिये ही स्वर्गादि लोकोंमें गये हैं । अतः भोगपरायणताके कारण उनमें मुक्तिकी इच्छा नहीं होती । इसके सिवा देवलोकमें मुक्तिका अधिकार भी नहीं है ।
भगवान्के दो रूप होते हैं‒सच्चिदानन्दमयरूप और देवरूप । प्रत्येक ब्रह्माण्डके जो अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं, वह भगवान्का देवरूप है और जो सबका मालिक, सर्वोपरि परब्रह्म परमात्मा है, वह भगवान्का सच्चिदानन्दमयरूप है । इस सच्चिदानन्दमय-रूपको ही शास्त्रोंमें महाविष्णु आदि नामोंसे कहा गया है । भगवान्को भक्तिके वशमें होकर भक्तोंके सामने तो सच्चिदानन्दमयरूपसे प्रकट होना पड़ता है, पर देवताओंके सामने वे देवरूपसे ही प्रकट होते हैं । कारण कि देवता केवल अपनी रक्षाके लिये ही भगवान्को पुकारते हैं, मुक्त होनेके लिये नहीं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
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