(गत ब्लॉगसे आगेका)
पाप-पुण्यके इस लौकिक और पारलौकिक फलके विषयमें एक बात और समझनेकी है कि जिन पापकर्मोंका फल यहीं कैद, जुर्माना, अपमान, निन्दा आदिके रूपमें भोग लिया है, उन पापोंका फल मरनेके बाद भोगना नहीं पड़ेगा ।परन्तु व्यक्तिके पाप कितनी मात्राके थे और उनका भोग कितनी मात्रामें हुआ अर्थात् उन पाप कर्मोंका फल उसने पूरा भोगा या अधूरा भोगा‒इसका पूरा पता मनुष्यको नहीं लगता; क्योंकि मनुष्यके पास इसका कोई माप-तौल नहीं है । परन्तु भगवान्को इसका पूरा पता है; अतः उनके कानूनके अनुसार उन पापोंका फल यहाँ जितने अंशमें कम भोगा गया है, उतना इस जन्ममें या मरनेके बाद भोगना ही पड़ेगा । इसलिये मनुष्यको ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये कि मेरा पाप तो कम था पर दण्ड अधिक भोगना पड़ा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दण्ड मुझे मिल गया ! कारण कि यह सर्वज्ञ, सर्वसुहृद्, सर्वसमर्थ भगवान्का विधान है कि पापसे अधिक दण्ड कोई नहीं भोगता और जो दण्ड मिलता है, वह किसी-न-किसी पापका ही फल होता है* ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कर्म-रहस्य’ पुस्तकसे
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* एक सुनी हुई घटना है । किसी गाँवमें एक सज्जन रहते थे । उनके घरके सामने एक सुनारका घर था । सुनारके पास सोना आता रहता था और वह गढ़कर देता रहता था । ऐसे वह पैसे कमाता था । एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया । रात्रिमें पहरा लगानेवाले सिपाहीको इस बातका पता लग गया । उस पहरेदारने रात्रिमें उस सुनारको मार दिया और जिस बक्सेमें सोना था, उसे उठाकर चल दिया । इसी बीच सामने रहनेवाले सज्जन लघुशंकाके लिये उठकर बाहर आये । उन्होंने पहरेदारको पकड़ लिया कि तू इस बक्सेको कैसे ले जा रहा है ? तो पहरेदारने कहा‒‘तू चुप रह हल्ला मत कर । इसमेंसे कुछ तू ले ले और कुछ मैं ले लूँ ।’ सज्जन बोले‒‘मैं कैसे ले लूँ ? मैं चोर थोड़े ही हूँ !’ पहरेदारने कहा‒‘देख, तू समझ जा, मेरी बात मान ले, नहीं तो दुःख पायेगा ।’ पर वे सज्जन माने नहीं । तब पहरेदारने बक्सा नीचे रख दिया और उस सज्जनको पकड़कर जोरसे सीटी बजा दी । सीटी सुनते ही और जगह पहरा लगानेवाले सिपाही दौड़कर वहाँ आ गये । उसने सबसे कहा कि ‘यह इस घरसे बक्सा लेकर आया है और मैंने इसको पकड़ लिया है ।’ तब सिपाहियोंने घरमें घुसकर देखा कि सुनार मरा पड़ा है । उन्होंने उस सज्जनको पकड़ लिया और राजकीय आदमियोंके हवाले कर दिया । जजके सामने बहस हुई तो उस सज्जनने कहा कि ‘मैंने नहीं मारा है, उस पहरेदार सिपाहीने मारा है ।’ सब सिपाही आपसमें मिले हुए थे, उन्होंने कहा कि ‘नहीं इसीने मारा है, हमने खुद रात्रिमें इसे पकड़ा है,’ इत्यादि ।
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