(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान्का नाम लेते हुए आनन्द मनाओ, प्रसन्न हो जाओ कि मुखमें भगवान्का नाम आ गया, हम तो निहाल हो गये ! आज तो भगवान्ने विशेष कृपा कर दी, जो नाम मुखमें आ गया । नहीं तो मेरे-जैसेके लिये भगवान्का नाम कहाँ ? जिनके याद करनेमात्रसे मंगल हो जाय ऐसे जिस नामको भगवान् शंकर जपते हैं‒
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ।
सादर जपहु अनंग आराती ॥
वह नाम मिल जाय हमारेको । कलियुगी तो हम जीव और राम-नाम मिल जाय तो बस मौज हो गयी, भगवान्ने विशेष ही कृपा कर दी । ऐसी सम्मति मिल गयी, हमारेको भगवान्की याद आ गयी । भगवान्की बात सुननेको मिली है; भगवान्की चर्चा मिली है, भगवान्का नाम मिला है,भगवान्की तरफ वृत्ति हो गयी है‒ऐसे समझकर खूब आनन्द मनावें, खूब खुशी मनावें, प्रसन्नता मनावें ।
एक बात और विलक्षण है ! उसपर आप ध्यान दें । बहुत ही लाभकी बात है, (६) जब कभी भगवान् अचानक याद आ जाये भगवान्का नाम अचानक याद आ जाय,भगवान्की लीला अचानक याद आ जाय, उस समय यह समझे कि भगवान् मेरेको याद करते हैं । भगवान्ने अभी मेरेको याद किया है । नहीं तो मैंने उद्योग ही नहीं किया,फिर अचानक ही भगवान् कैसे याद आये ? ऐसा समझकर प्रसन्न हो जाओ कि मैं तो निहाल हो गया । मेरेको भगवान्ने याद कर लिया । अब और काम पीछे करेंगे । अब तो भगवान्में ही लग जाना है; क्योंकि भगवान् याद करते हैं,ऐसा मौका कहाँ पड़ा है ? ऐसे लग जाओ तो बहुत ज्यादा भक्ति है । जब अंगद रवाना हुए और उनको पहुँचाने हनुमान्जी गये तो अंगदने कहा‒‘बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि’ याद कराते रहना रामजीको । तात्पर्य जिस समय अचानक भगवान् याद आते हैं, उस समयको खूब मूल्यवान् समझकर तत्परतासे लग जाओ । इस प्रकार छः बातें हो गयीं ।
गुप्त अकाम निरन्तर, ध्यान-सहित सानन्द ।
आदर जुत जप से तुरत, पावत परमानन्द ॥
कई भाई कह देते हैं, हम तो खाली राम-राम करते हैं । ऐसा मत समझो । यह राम-नाम खाली नहीं होता है ? जिस नामको शंकर जपते हैं, सनकादिक जपते हैं, नारदजी जपते हैं, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, संत-महात्मा जपते हैं, वह नाम मेरेको मिल गया, यह तो मेरा भाग्य ही खुल गया है । ऐसे उसका आदर करो । जहाँ कथा मिल जाय, उसका आदर करो । भगवान्के भक्त मिल जायँ उनका आदर करो । भगवान्की लीला सुननेको मिल जाय, तो प्रसन्न हो जाओ कि यह तो भगवान्ने बड़ी कृपा कर दी । भगवान् मानो हाथ पकड़कर मेरेको अपनी तरफ खींच रहे हैं । भगवान् मेरे सिरपर हाथ रखकर कहते हैं‒‘बेटा ! आ जा ।’ ऐसे मेरेको बुला रहे हैं । भगवान् बुला रहे हैं‒इसकी यही पहचान है कि मेरेको सुननेके लिये भगवान्की कथा मिल गयी । भगवान्की चर्चा मिल गयी । भगवान्का पद मिल गया । भगवत्सम्बन्धी पुस्तक मिल गयी । भगवान्का नाम देखनेमें आ गया ।
मालाके बिना अगर नाम-जप होता हो तो मालाकी जरूरत नहीं । परन्तु मालाके बिना भूल बहुत ज्यादा होती हो तो माला जरूर रखनी चाहिये । मालासे भगवान्की यादमें मदद मिलती है ।
माला मनसे लड़ पड़ी, तूँ नहि विसरे मोय ।
बिना शस्त्रके सूरमा लड़ता देख्या न कोय ॥
बिना शस्त्रके लड़ाई किससे करें ! यह माला शस्त्र है भगवान्को याद करनेका ! भगवान्की बार-बार याद आवे, इस वास्ते भगवान्की यादके लिये मालाकी बड़ी जरूरत है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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