(गत ब्लॉगसे आगेका)
गायका
दूध पीते हैं, उसे छानते हैं कि कहीं रूआँ (बाल) न आ जाय । दूध तो प्रसन्नतासे
दिया जाता है, बाल टूटनेसे खून आता है खून । बाल आ जाय तो क्या हर्ज है ? अरे रूआँ
एक भी टूटेगा तो गौ माताको दुःख होगा । अतः दुःख देकर ली हुई चीज बड़ी अनिष्टकारी
होती है । लड़केवालोंको कहना चाहिये कि हम धन नहीं लेंगे,
हम तो केवल कन्या लेंगे । कन्या-दान लेते हैं, कन्या-दान लेना भी तो दान है, बड़ा भारी
दान है ! क्यों लेते हैं ? अभी हम लेंगे तो आगे भगवान् हमें पुत्री देगें तो हम भी
कन्या दान करेंगे । ऐसा रिवाज है कि दहेजकी चीजें घरमें नहीं रखते, उसे
कुटुम्बमें, परिवारमें लगा देते हैं । बेटीको, ब्राह्मणोंको, सबको बाँट देते हैं ।
घरमें कोई चीज न रह जाय, ऐसे मिठाई आदि बाँटते हैं । अपनेपर तो कर्जा नहीं रहा और
लोग सब राजी होते हैं ।
शादीके बाद बहूके पीहरसे कोई चीज आती है
तो सास आदि उसकी निन्दा करती हैं कि क्या चीज भेजी ? बहूरानी सुन रही है, उसको लगे
बुरा । भला माँकी निन्दा किसीको अच्छी लगेगी ? माँकी निन्दासे हृदयमें दुःख होता
है । बादमें जब वह हो जायगी मालिकन तो जो चाहेगी वही होगा । इसलिए उसे प्यार करो,
स्नेह करो, राजी रखो, बहूके घरसे जो आया उसमें अपने घरसे मिलाकर बाँटो । लोगोंसे
कहो कि ऐसा बहुत आया है । तो बहूकी माँकी हो
जायगी बड़ाई, इससे बहू खुश हो जायगी । आप कहेंगे कि रुपया लगता है, पर
बीस-पचास रुपये और लगानेसे आदमी अपना हो जायगा । बहू आपकी हो जायगी । सदाके लिये
खरीदी जायगी । सौ-पचास रुपएमें कोई आदमी ख़रीदा जाय तो कोई महँगा है ? सस्ता ही
पड़ेगा, गहरा विचार करो । व्यवहार भी अच्छा रहेगा, प्रेम भी बढ़ेगा । बहू भी राजी
होगी कि मेरी सासने मेरी माँकी महिमा की है । इतना खर्च किया, उसका उम्रभर असर
पड़ेगा; इसलिए भाई ! थोडा-सा त्याग करो, उसका फल बड़ा अच्छा होगा ।
जो वस्तुएँ
मिली हैं उनका सदुपयोग किया जाय । लड़के-लड़कीका ठीक तरहसे पालन किया जाय, अच्छी
शिक्षा दी जाय । उनके अच्छे भाव बनाये जायँ, सद्गुणी और सदाचारी बनें । पैसे
कमानेमें तो आपको समय रहता है, परन्तु बच्चे क्या कर रहे हैं, कैसे पल रहे हैं, क्या शिक्षा
पा रहे हैं, इन बातोंकी तरफ आप खयाल ही नहीं करते । अरे भाई ! यह सम्पत्ति है असली
। यह मनुष्य महान् हो जायगा
। कितनी बढ़िया बात होगी ! जितने-जितने महापुरुष हुए हैं,
उनकी माताएँ बड़ी श्रेष्ठ हुई हैं । ऐसी माताओंके बालक बढ़िया हुए हैं, संत-महात्मा
हुए हैं । माँका स्वभाव आता है बालकोंमें, इस कारण माताओंको चाहिये कि बालकोंको
अच्छी शिक्षा दें । परन्तु शिक्षा देती हैं उलटी, लड़कियोंको सिखाती हैं कि
अपना धन तो रखना अपने पासमें । जब अलग होगी तो वह धन तेरे पासमें रह जायगा और ऐसे
सिखाकर भेजती हैं कि ससुरालमें काम तू क्यों करे, तेरी जेठानी करे, ननद करे । तू
काम मत किया कर । अब वहाँ कलह होगी, खटपट मचेगी । आपके बहू आयेगी, वह भी अगर ऐसी
सीखी हुई आ जायगी तो वह भी ऐसा ही करेगी, काम नहीं करेगी । फिर आप कहेंगी कि हमारी
बहू काम नहीं करती । आप अच्छा करो तो आपके लिये अच्छा होगा । बुरा करो तो बुरा
होगा भाई !
कलियुग है इस हाथ दे, उस हाथ
ले,
क्या
खूब सौदा नगद है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |