।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७१, रविवार
त्रयोदशीश्राद्ध
मानसमें नाम-वन्दना


 (गत ब्लॉगसे आगेका)

गिरा और बीचि‒ये दोनों स्त्रीलिंग पद हैं, अरथ और जल‒ये दोनों पुँल्लिंग पद हैं । ये दोनों दृष्टान्त सीता और रामकी परस्पर अभिन्नता बतानेके लिये दिये गये हैं । इनका उलट-पुलट करके प्रयोग किया है । पहले गिरा’ स्त्रीलिंग पद कहकर अरथ’ पुँल्लिंग पद कहा, यह तो ठीक है; क्योंकि पहले सीता और उसके बाद राम हैं, पर दूसरे उदाहरणमें उलट दिया अर्थात् जल’[*] पुँल्लिंग पद पहले रखा और उसके साथ बीचि’ स्त्रीलिंग पद बादमें रखा । इसका तात्पर्य रामसीता’ हुआ । इस प्रकार कहनेसे दोनोंकी अभिन्नता सिद्ध होती है । सीताराम’ सब लोग कहते हैं, पर रामसीता’ ऐसा नहीं कहते हैं । जब भगवान्‌के प्रति विशेष प्रेम बढ़ता है, उस समय सीता और राम भिन्न-भिन्न नहीं दीखते । इस कारण किसको पहले कहें, किसको पीछे कहें‒यह विचार नहीं रहता, तब ऐसा होता है । श्रीभरतजी महाराज जब चित्रकूट जा रहे हैं तो प्रयागमें प्रवेश करते समय कहते हैं‒

भरत  तीसरे  पहर   कहँ   कीन्ह   प्रबेसु   प्रयाग ।
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ॥
                                                    (मानस, अयोध्याकाण्ड, दोहा २०३)

प्रेममें उमँग-उमँगकर रामसिय-रामसिय कहने लगते हैं । उस समय प्रेमकी अधिकताके कारण दोनोंकी एकताका अनुभव होता है । इसलिये चाहे श्रीसीताराम कहो‒चाहे रामसीता कहो, ये दोनों अभिन्न हैं । ऐसे श्रीसीतारामजीकी वन्दना करते हैं । अब इससे आगे नाम महाराजकी वन्दना करके नौ दोहोंमें नाममहिमाका वर्णन करते हैं ।

एक नाम-जप होता है और एक मन्त्र-जप होता है ।  ‘रामनाम मन्त्र भी है और नाम भी है । नाममें सम्बोधन होता है तथा मन्त्रमें नमन और स्वाहा होता है । जैसे रामाय नमः’ यह मन्त्र है । इसका विधिसहित अनुष्ठान होता है और राम ! राम !! राम !!! ऐसे नाम लेकर केवल पुकार करते हैं ।  राम नामकी पुकार विधिरहित होती है । इस प्रकार भगवान्‌को सम्बोधन करनेका तात्पर्य यह है कि हम भगवान्‌को पुकारें, जिससे भगवान्‌की दृष्टि हमारी तरफ खिंच जाय ।
कैसा ही क्यों न जन नींद सोता ।
वो नाम लेते  ही  सुबोध  होता ॥

जैसे, सोये हुए किसी व्यक्तिको पुकारें तो वह अपना नाम सुनते ही नींदसे जग जाता है, ऐसे ही राम ! राम !! राम !!! करनेसे रामजी हमारी तरफ खिंच जाते हैं । जैसे, एक बच्चा माँ-माँ पुकारता है तो माताओंका चित्त उस बच्चेकी तरफ आकृष्ट हो जाता है । जिनके छोटे बालक हैं, उन सबका एक बार तो उस बालककी तरफ चित्त खिंचेगा, पर उठकर वही माँ दौड़ेगी, जिसको वह बच्चा अपनी माँ मानता है । माँ नाम तो उन सबका ही है, जिनके बालक हैं । फिर वे सब क्यों नहीं दौड़तीं ? सब कैसे दौड़ें ! वह बालक तो अपनी माँको ही पुकारता है । दूसरी माताओंके कितने ही सुन्दर गहने हों, सुन्दर कपड़े हों, कितना ही अच्छा स्वभाव हो, पर उनको वह अपनी माँ नहीं मानता । वह तो अपनी माँको ही चाहता है, इसलिये उस बालककी माँ ही उसकी तरफ खिंचती है । ऐसे ही राम-राम’ हम आर्त होकर पुकारें और भगवान्‌को ही अपना मानें तो भगवान् हमारी तरफ खिंच जायेंगे ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे



[*] ‘जल’ शब्द संस्कृत भाषाके अनुसार नपुसंकलिंग है, पर हिन्दीमें ‘जल’ शब्द पुँल्लिंग माना गया है । हिन्दीमें नपुंसकलिंग होता ही नहीं ।