(गत ब्लॉगसे आगेका)
गिरा और बीचि‒ये दोनों स्त्रीलिंग पद हैं,
अरथ और जल‒ये दोनों पुँल्लिंग पद हैं । ये दोनों दृष्टान्त सीता
और रामकी परस्पर अभिन्नता बतानेके लिये दिये गये हैं । इनका उलट-पुलट करके प्रयोग किया
है । पहले ‘गिरा’ स्त्रीलिंग पद कहकर ‘अरथ’ पुँल्लिंग पद कहा, यह तो ठीक है; क्योंकि पहले सीता और उसके बाद राम हैं,
पर दूसरे उदाहरणमें उलट दिया अर्थात् ‘जल’[*] पुँल्लिंग पद पहले रखा और उसके साथ ‘बीचि’ स्त्रीलिंग पद बादमें रखा । इसका तात्पर्य ‘रामसीता’ हुआ । इस प्रकार कहनेसे दोनोंकी अभिन्नता सिद्ध होती है । ‘सीताराम’ सब लोग कहते हैं, पर ‘रामसीता’ ऐसा नहीं कहते हैं । जब भगवान्के प्रति विशेष प्रेम बढ़ता है,
उस समय सीता और राम भिन्न-भिन्न नहीं दीखते । इस कारण किसको
पहले कहें, किसको पीछे कहें‒यह विचार नहीं रहता,
तब ऐसा होता है । श्रीभरतजी महाराज जब चित्रकूट जा रहे हैं तो
प्रयागमें प्रवेश करते समय कहते हैं‒
भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु
प्रयाग ।
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ॥
(मानस, अयोध्याकाण्ड,
दोहा २०३)
प्रेममें उमँग-उमँगकर रामसिय-रामसिय कहने लगते हैं । उस समय
प्रेमकी अधिकताके कारण दोनोंकी एकताका अनुभव होता है । इसलिये चाहे श्रीसीताराम कहो‒चाहे
रामसीता कहो, ये दोनों अभिन्न हैं । ऐसे श्रीसीतारामजीकी वन्दना करते हैं
। अब इससे आगे नाम महाराजकी वन्दना करके नौ दोहोंमें नाममहिमाका वर्णन करते हैं ।
एक नाम-जप होता है और एक मन्त्र-जप होता है । ‘राम’ नाम मन्त्र भी है और नाम भी है । नाममें सम्बोधन होता है तथा
मन्त्रमें नमन और स्वाहा होता है । जैसे ‘रामाय
नमः’ यह मन्त्र है । इसका विधिसहित अनुष्ठान होता है और राम ! राम !! राम !!! ऐसे नाम
लेकर केवल पुकार करते हैं । ‘राम’
नामकी पुकार विधिरहित होती है । इस प्रकार भगवान्को
सम्बोधन करनेका तात्पर्य यह है कि हम भगवान्को पुकारें, जिससे
भगवान्की दृष्टि हमारी तरफ खिंच जाय ।
कैसा ही क्यों न जन नींद सोता ।
वो नाम लेते ही सुबोध होता
॥
जैसे, सोये हुए किसी व्यक्तिको पुकारें तो वह अपना नाम सुनते ही नींदसे
जग जाता है, ऐसे ही राम ! राम !! राम !!! करनेसे रामजी हमारी तरफ खिंच जाते
हैं । जैसे, एक बच्चा माँ-माँ पुकारता है तो माताओंका चित्त उस बच्चेकी तरफ
आकृष्ट हो जाता है । जिनके छोटे बालक हैं,
उन सबका एक बार तो उस बालककी तरफ चित्त खिंचेगा,
पर उठकर वही माँ दौड़ेगी,
जिसको वह बच्चा अपनी माँ मानता है । माँ नाम तो उन सबका ही है,
जिनके बालक हैं । फिर वे सब क्यों नहीं दौड़तीं ? सब कैसे दौड़ें
! वह बालक तो अपनी माँको ही पुकारता है । दूसरी माताओंके कितने ही सुन्दर गहने हों,
सुन्दर कपड़े हों, कितना ही अच्छा स्वभाव हो,
पर उनको वह अपनी माँ नहीं मानता । वह तो अपनी माँको ही चाहता
है, इसलिये उस बालककी माँ ही उसकी तरफ खिंचती है । ऐसे ही ‘राम-राम’ हम आर्त होकर पुकारें और भगवान्को ही अपना मानें तो भगवान्
हमारी तरफ खिंच जायेंगे ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
[*] ‘जल’ शब्द संस्कृत भाषाके अनुसार नपुसंकलिंग है, पर हिन्दीमें ‘जल’ शब्द
पुँल्लिंग माना गया है । हिन्दीमें नपुंसकलिंग होता ही नहीं ।
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