प्रवचन- १
श्रीसीताराम-वन्दना
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न ।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा १८)
गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज कथा प्रारम्भ करनेसे पहले सभीकी
वन्दना करते हैं । इस दोहेमें श्रीसीतारामजीको नमस्कार करते हैं । इसके बाद नाम-वन्दना
और नाम-महिमाको लगातार नौ दोहे और बहत्तर चौपाइयोंमें कहते हैं । श्रीगोस्वामीजी महाराजको
यह नौ संख्या बहुत प्रिय लगती है । नौ संख्याको कितना ही गुणा किया जाय,
तो उन अंकोंको जोड़नेपर नौ ही बचेंगे । जैसे,
नौ संख्याको नौसे गुणा करनेपर इक्यासी होते हैं । इक्यासीके
आठ और एक, इन दोनोंको जोड़नेपर फिर नौ हो जाते हैं । इस प्रकार कितनी ही
लम्बी संख्या क्यों न हो जाय, पर अन्तमें नौ ही रहेंगे;
क्योंकि यह संख्या पूर्ण है ।
गोस्वामीजी महाराजको जहाँ-कहीं ज्यादा महिमा करनी होती है तो
नौ तरहकी उपमा और नौ तरहके उदाहरण देते हैं । नौ संख्या आखिरी हद है,
इससे बढ़कर कोई संख्या नहीं है । यह नौ संख्या अटल है ।
संबत सोरह सै एकतीसा
।
करउँ कथा हरि पद धरि सीसा ॥
नौमी भौम बार मधुमासा ।
अवधपुरी यह चरित
प्रकासा ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा ३४ । ४,५)
रामजन्म तिथि बार सब जस त्रेता महँ भास ।
तस इकतीसा महँ को जोग लगन ग्रह रास ॥
भगवान् श्रीरामने त्रेतायुगमें चैत्र मास,
शुक्लपक्ष, नवमी तिथि, मंगलवारके दिन शुभ मुहूर्तके समय अयोध्यामें अवतार लिया । भगवान्के
अवतारके दिन जैसा शुभ मुहूर्त था, ठीक वैसा ही शुभ मुहूर्तका संयोग संवत् १६३१ में भगवान्के अवतारके
दिन बना । श्रीगोस्वामीजी महाराजने अयोध्यामें उसी दिन श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ लिखना
आरम्भ किया । जबतक ऐसा संयोग नहीं बना, तबतक वैसे शुभ मुहूर्तकी प्रतीक्षा करते रहे ।
यहाँ अठारहवें दोहेमें श्रीसीतारामजीके चरणोंकी वन्दना करते
हैं । सीतारामजीकी बहुत विलक्षणता है । ‘जिन्हहि परम प्रिय खिन्न’ दुःखी आदमी किसीको प्यारा नहीं लगता । दीन-दुःखीको सब दुत्कारते
हैं, पर सीतारामजीको जो दुःखी होता है, वह ज्यादा प्यारा लगता है,
वह उनका परमप्रिय है, उसपर विशेष कृपा करते हैं । उन श्रीसीतारामजीके
चरणोंमें मैं प्रणाम करता हूँ ।
श्रीसीतारामजी अलग-अलग नहीं हैं । इस बातको समझानेके लिये दो
दृष्टान्त देते हैं । जैसे, गिरा-अरथ और जल-बीचि कहनेका तात्पर्य है कि वाणी और उसका अर्थ
कहनेमें दो हैं, पर वास्तवमें दो नहीं,
एक हैं । वाणीसे कुछ भी कहोगे तो उसका कुछ-न-कुछ अर्थ होगा ही
और किसीको कुछ अर्थ समझाना हो तो वाणीसे ही कहा जायगा‒ऐसे परस्पर अभिन्न हैं । इसी
तरह जल होगा तो उसकी तरंग भी होगी । तरंग और जल कहनेमें दो हैं,
पर जलसे तरंग या तरंगसे जल अलग नहीं है एक ही है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
|