(गत ब्लॉगसे आगेका)
ध्रुवजीने ग्लानिसे (विमाताके वचनोंसे दुःखी होकर सकामभावसे) ‘हरि’ नामका जप
किया । विमाताने पिताकी गोदसे उतारकर धक्का देकर निकल दिया कि ‘जा तू इस गोदमें बैठने लायक नहीं है ।
तू उस अभागिनीकी कोखसे जन्मा है, इसलिये राजाकी गोदमें बैठनेका अधिकारी नहीं है ।’
ध्रुव इस बातसे बड़ा दुःखी हुआ । ध्रुवने माँसे पूछा तो उसने भी कहा—‘तेरी छोटी माने जो बात कही है, वह सच्ची है । तुने और मैंने—दोनोंने ही भजन नहीं किया । तभी तो यह दशा हुई
है । नहीं तो हमारी ऐसी दशा क्यों होती !’ ऐसा सुनकर वे भगवान्से ही राज्य लेनेकी
इच्छाको लेकर भजनमें लग गये । नारदजीके प्रलोभन और भय दीखानेपर भी वे पीछे नहीं हटे, भजन करनेके लिये
जंगलमें चल दिये; क्योंकि वे ध्रुव अर्थात् पक्के थे । ऐसे भक्तोंको ‘अर्थार्थी’ कहा जाता है ।
आजकल भी लोग भगवान्से धन चाहते हैं, पर वे केवल
भगवान्के भक्त नहीं हैं । साथ-साथ वे भक्त बनते हैं—झूठ, कपट और बेईमानीके । वे कहते हैं—‘हे बेईमानी देवता ! हे झूठ देवता ! हे कपट
देवता ! हे ब्लैक देवता ! तुम हमें निहाल करो । आपकी कृपासे ही हम जीयेंगे, और
जीनेका कोई साधन है नहीं ।’ वे भी एक तरहसे अर्थार्थी भक्त हैं, पर हैं वे पापोंके
भक्त, भगवान्के नहीं हैं । जो भगवान्का भक्त होगा, वह पाप क्यों करेगा ! क्या
पाप जितनी भी ताकत भगवान्में नहीं है !
पापसे
छूटनेका उपाय
‘पाप पयोनिधि जन मन मीना’—पहले हमारे समझमें यह बात नहीं आयी थी । पापमें मनुष्यका
इतना मन कैसे लग जाता है ? क्या बात है ? परन्तु आजकल देखते हैं तो कई जगह यह बात
सुननेमें आती है कि बिना पाप-अन्याय किये, झूठ-कपट किये हम जी नहीं सकते । जीवनका आधार पापको मान लिया । ऐसे जो पापोंमें रचे-पचे हैं,
उनसे कहा जाय कि ‘तुम नाम-जप करो’ तो बड़ा कठीन हो जायगा । पापीके मुखसे भगवान्का
नाम नहीं आता । पाप अधिक होनेके कारण ऐसी दशा हो जाती है ।
इस विषयमें मेरे मनमें एक बात आती है । आप भाई-बहन ध्यान
दें ! हम तो हिम्मत करके ‘राम-राम’ करेंगे ही—ऐसा पक्का निश्चय करके नाम-जपमें लग जाओ तो पाप ठहरेगा
नहीं । ये दोनों साथमें नहीं रह सकते । पाप भाग जायगा । भगवान्के नामका आश्रय
लेकर यह निश्चय करो कि उसका पाप नष्ट हो जाता है, जो दृढ़ होकर भजन करता है । तो हम
भी दृढ़व्रत होकर भजन करेंगे । दृढ़तासे हम भजनमें ही लग जायेंगे । तो फिर पाप ठहरेगा नहीं, अशुद्धि टिकेगी
नहीं । जैसे सूर्योदय होनेपर अमवास्यकी बड़ी काली रात भी ठहर नहीं सकती, ऐसे ही आपलोग कृपा करके रात-दिन ‘राम’ नाममें लग जाओ तो सब पाप नष्ट
हो जायँगे ।
एक सन्त थे, उनसे किसीने पूछा—‘महाराज ! आप कहते हैं कि पाप मत करो । पाप तो हमसे छूटता
नहीं; परन्तु हमारेसे पाप छूट जाय—ऐसा कोई
उपाय बतलाओ । पाप छोड़नेकी हमारे हिम्मत नहीं होती ।’ सन्तने कहा—‘तुम रात-दिन ‘राम-राम’ जपमें लग जाओ ।’ ‘पाप पयोनिधि जन मन मीना’—ऐसे पापी लोगोंको भी यह उपाय सन्तने बताया । हमने तो
परम्परासे सुना । उनसे तो इतना ही कहा गया कि तुम राम-राम करो । मैंने सोचा कि
देखो, सन्तोंकी कितनी गहरी सूझ है, जो सीधा उपाय बता दिया कि राम-राममें लग जाओ ।
राम-राममें लगनेसे क्या होगा कि ‘राम’ नाम भीतरमें बैठ जायगा । अभी तो बाहरसे होता
है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |