(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रथम राम रसना
सिवर, द्वितीय कण्ठ
लगाय ॥
तृतीय हृदय ध्यान
धर, चौथे नाभ
मिलाय ॥
अध मध उत्तम प्रिय घर ठानु, चौथे अति उत्तम अस्थानु ॥
ये चहुँ बिन देखे आसरमा, राम भगति को पावे मारमा ॥
(नामापरचा)
ऐसे जब ‘राम’ नाम भीतर उतरेगा तो भीतर जानेपर वह
सब काम कर लेगा । शुद्धि, पवित्रता, निर्मलता, भगवान्की भक्ति—जो आनी चाहिये सब आ जायगी । इसलिये गोस्वामीजी महाराजने बड़ी विचित्र बात लिखी—‘नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी ।’ और कुछ नहीं तो जीभसे ही जपो । ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’—भगवान्के नामका जप करे और भीतर-ही-भीतर ध्यान होता रहे—उसका तो फिर कहना ही क्या है ! जीभमात्रसे नाम जपनेसे योगी
जाग जाता है | जो नाम जप करते हैं, जीभमात्रसे ही, वे भी ब्रह्माजीके प्रपंचसे
वियुक्त होकर विरक्त सन्त हो जाते हैं । जीभमात्रसे जप करना है भी सुगम ।
बहुतसे लोग कह देते हैं—‘तुम नाम-जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहीं—ऐसा कहनेवाले वे भाई भोले हैं, वे भूलमें हैं,
इस बातको जानते ही नहीं; क्योंकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं । पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगे—ऐसा कभी हुआ है ? और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ?
पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगे—ऐसा नहीं होता । नाम जपते-जपते ही नाम-महाराजकी
कृपासे मन लग जाता है ‘हरिसे लागा रहो भाई । तेरी
बिगड़ी बात बन जाई, रामजीसे लागा रहो भाई ॥’ इसलिये नाम-महाराजकी शरण लेनी
चाहिये । जीभसे ही ‘राम-राम’ शुरू कर दो, मनकी परवाह मत करो । ‘परवाह मत करो’—इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ । इसका अर्थ
यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ । यह बात नहीं है
। जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओ । हमने सुना है—
माला तो करमें
फिरे, जीभ फिरे
मुख माहिं ।
मनवाँ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ॥
‘भजन होगा नहीं’—यह कहाँ लिखा है ? यहाँ तो ‘सुमिरन
नाहिं’—ऐसा लिखा
है । सुमिरन नहीं होगा, यह बात तो ठीक है; क्योंकि ‘मनवा
तो चहुँ दिसि फिरे’ मन संसारमें घूमता है तो सुमिरन कैसे होगा ? सुमिरन
मनसे होता है; परन्तु ‘यह तो जप नाहिं’—ऐसा कहाँ लिखा है ? जप तो हो ही गया । जीभमात्रसे भी अगर हो गया तो नाम-जप तो हो ही गया ।
हमें
एक सन्त मिले थे । वे कहते थे कि परमात्माके साथ आप किसी तरहसे ही अपना सम्बन्ध
जोड़ लो । ज्ञानपूर्वक जोड़ लो, और मन-बुद्धिपूर्वक जोड़ लो तब तो कहना ही क्या है ?
और नहीं तो जीभसे ही जोड़ लो । केवल ‘राम’ नामका उच्चारण
करके भी सम्बन्ध जोड़ लो । फिर सब काम ठीक हो जायगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |