(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘अनिच्छया ही संस्पृष्टो दहत्येव हि पावकः’—आग बिना मनके छू जायेंगे तो भी वह जलायेगी ही, ऐसे ही
भगवान्का नाम किसी तरहसे ही लिया जाय—
भाय कुभाय अनख
आलसहूँ ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
(मानस,
बालकाण्ड २८ । १)
इसका अर्थ उलटा नहीं लेना चाहिये कि हम कुभावसे ही नाम लें
और मन लगावें ही नहीं । बेगारखाते ऐसे ही नाम लें—ऐसा नहीं । मन लगानेका उद्योग
करो, सावधानी रखो, मनको भगवान्में लगाओ, भगवान्का चिन्तन करो, पर न हो सके तो
घबराना बिलकुल नहीं चाहिये । मेरे कहनेका मतलब यह है कि मन नहीं लग सका तो ऐसा मत
मानो कि हमारा नाम-जप निरर्थक चला गया । अभी मन न लगे तो परवाह मत करो; क्योंकि
आपकी नीयत जब मन लगानेकी है तो मन लग जायगा । एक तो हम मन लगाते ही नहीं और
एक मन लगता नहीं—इन दोनों
अवस्थओंमें बड़ा अन्तर है । ऐसे दिखनेमें तो दोनोंकी एक-सी अवस्था ही दीखती है ।
कारण कि दोनों अवस्थओंमें ही मन तो नहीं लगा । दोनोंकी यह अवस्था बराबर रही;
परन्तु बराबर होनेपर भी बड़ा भारी अन्तर है । जो लगाता ही नहीं, उसका तो उद्योग भी
नहीं है । उसका मन लगानेका विचार ही नहीं है । दूसरा व्यक्ति मनको भगवान्में
लगाना चाहता है, पर लगता नहीं । भगवान् सबके हृदयकी बात देखते हैं—
रहति न प्रभु चित चूक किए की ।
करत सुरति सय बार
हिए की ॥
(मानस, बालकाण्ड २९ । ५)
भगवान् हृदयकी बात देखते हैं, कि यह मन लगाना
चाहता है, पर मन नहीं लगा । तो महाराज ! उसका बड़ा भारी पुण्य होगा । भगवान्पर
उसका बड़ा असर पड़ेगा । वे सबकी नीयत देखते हैं । अपने तो मन लगानेका प्रयत्न करो,
पर न लगे तो उसमें घबराओ मत और नाम लिये जाओ ।
राम ! राम !! राम !!!
नाम-जपका
अनुभव
‘राम’ नामकी वन्दनाका प्रकरण चल रहा है । इसमें ‘राम’ नामकी
महिमाका वर्णन भी आया है । इसकी महिमा सुननेसे ‘राम’ नाममें रुचि हो सकती है, पर
इसका माहात्म्य तो ‘राम’ नाम जपनेसे ही मिलता है । नाम-महिमा
कहने और सुननेसे उसमें रुचि होती है और नाम-जप करनेसे अनुभव होता है,
इसलिये बड़ी उपयोगी बात है । इसकी वास्तविकता जपनेसे ही
समझमें आयेगी, पूरा पता उससे ही लगेगा । जैसे, भूखे आदमीको भोजनकी बात
बतायी जाय तो उसकी रुचि विशेष हो जाती है । पर बिना भूखके भोजनमें उतना रस नहीं
आता । जोरसे भूख लगती है, तब पता लगता है कि भोजन कितना बढ़िया है ! वह रुचता है,
जँचता भी है और पच भी जाता है । उस भोजनका रस बनता है, उससे शक्ति आती है । ऐसे ही
रुचिपूर्वक नामका जप करनेसे ही नामका माहात्म्य समझमें
आता है, इसलिये ज्यों-ज्यों अधिक नाम जपते हैं, त्यों-ही-त्यों उसका विशेष लाभ
होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |