(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक बहन थी । उसने अपने नाम-जपकी ऐसी बातें बतायीं, जो
सन्तोंकी वाणीमें भी मिलती नहीं । उसने कहा कि नाम जपते-जपते शरीरमें ठण्डक
पहुँचती है । सारे शरीरमें ठण्डा-ठण्डा झरना बहता है तथा एक प्रकारके मिठास और
आनन्दकी प्राप्ति होती है । मैंने सन्तोंकी वाणी पढ़ी है, पर ऐसा वर्णन नहीं आता,
जैसा उस बहनने अपना अनुभव बताया । ऐसे-ऐसे अलौकिक चमत्कार सन्त-महात्माओंने
थोड़े-थोड़े ही लिखे हैं । वे कहाँतक लिखें ? जो अनुभव
होता है, वो वर्णन करनेमें आता नहीं । वे खुद ही जानते हैं ।
सो सुख जानइ मन अरु काना ।
नहिं रसना पहिं जाइ बखाना ॥
वह कहनेमें नहीं आता । आप इसमें लग जायँ । भाइयोंसे, बहनोंसे, सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप नाम-जपमें लग
जायँ । आप निहाल हो जायेंगे और दुनिया निहाल हो जायगी । सबपर असर पड़ेगा और आपका तो
क्या कहें, जीवन धन्य हो जायगा । ‘भगवन्नाम’ की अपार महिमा है । गोस्वामीजी
महाराज आगे वर्णन करते हैं—
बरषा रितु रघुपति भगति
तुलसी सालि सुदास ।
राम नाम बर
बरन जुग सावन
भादव मास ॥
(मानस,
बालकाण्ड १९)
पहले ‘राम’ नामके अवयवोंका वर्णन हुआ फिर ‘महामन्त्र’ क
वर्णन हुआ । अब दो अक्षरोंका वर्णन होता है । ‘रा’ और ‘म’—ये दो अक्षर हैं । जो भगवान्के प्यारे भक्त हैं, वे सालि
(बढ़िया चावल) की खेती हैं और वर्षा-ऋतु श्रीरघुनाथजी महाराजकी भक्ति है ।
वर्षा-ऋतुमें खूब वर्षा हुआ करती है । चावलोंकी खेती, बाजरा आदि अनाजोंकी खेतीसे
भिन्न होती है । राजस्थानमें खेतमें यदि पानी पड़ा रहे तो घास सुख जाय, पर चावलके
खेतमें हरदम पानी भरा ही रहता है । जिससे खेतमें मछलियाँ पैसा हो जाती हैं ।
सालिके चावल बढ़िया होते हैं । चावल जितने बढ़िया होते हैं, उतना ही पानी ज्यादा
माँगते हैं । उनको पानी हरदम चाहिये ।
‘रा’ और ‘म’—ये दो
श्रेष्ठ वर्ण हैं । ऐसे ही श्रावण और भाद्रपद इन दो मासोंकी वर्षा-ऋतु कही जाती है
। श्रेष्ठ भक्तके यहाँ ‘राम’ नामरूपी वर्षकी झड़ी लगी
रहती है । आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—
आखर मधुर मनोहर
दोऊ ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥
(मानस, बालकाण्ड २० । १)
ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘मधुर’ कहनेका मतलब है कि रसनामें रस
मिलता है । ‘मनोहर’ कहनेका तात्पर्य है कि मनको अपनी ओर खींच लेता है । जिन्होंने
‘राम’ नामका जप किया है, उनको इसका पता लगता है, और आदमी नहीं जान सकते । विलक्षण
बात है कि ‘राम-राम’ करते-करते मुखमें मिठास पैदा होता है । जैसे, बढ़िया दूध हो और उसमें मिश्री पीसकर मिला दी जाय तो वह
कैसा मीठा होता है, उससे भी ज्यादा मिठास इसमें आने लगता है । ‘राम’ नाममें
लग जाते हैं तो फिर इसमें अद्भुत रस आने लगता है । ऐसे ये दोनों अक्षर मधुर और
मनोहर हैं । ‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’—ये दोनों अक्षर
वर्णमालाकी दो आँखें हैं । शरीरमें दो आँखें श्रेष्ठ मानी गयी है । आँखके बिना
जैसे आदमी अन्धा होता है, ऐसे ‘राम’ नामके बिना वर्णमाला भी अन्धी है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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