(गत ब्लॉगसे आगेका)
नाम जपते हुए बहुत विलक्षण अनुभव होने लगता है । छः
कमलोंमें एक नाभिकमल है, उसकी पंखुड़ियाँमें भगवान्के नाम हैं, वे भी दीखने लग
जाते हैं । आँखोंसे जैसे बाहरी ज्ञान होता है, ऐसे
नाम-जपसे बड़े-बड़े शास्त्रोंका ज्ञान हो जाता है । जिन सन्तोंने पढ़ायी नहीं
की, शास्त्र नहीं पढ़े, उनकी वाणीमें भी वेदोंकी ऋचाएँ आती हैं । वेदोंमें जैसा
लिखा हैं वैसी बातें उनकी साखियोंमें, वाणियोंमें आती हैं । वेदोंका ज्ञान उनको
कैसे हो गया ? ‘राम’ नाम महाराजसे । ‘राम’ नाम महाराज सब अक्षरोंकी आँख है ।
आँखोंसे दीखने लग जाता है, और विचित्र बातें दीखने लग जाती हैं ।
श्रीरामदासजी और श्रीलालदासजी महाराज दोनोंकी मित्रता थी ।
उन दोनोंकी मित्रताकी कई बातें मैंने सुनी थी । एक बार एक माई भोजन लेकर जा रही थी
तो उन दोनोंने आपसमें बात कही कि वह जो माई भोजन ला रही है, उसमें राबड़ी है, अमुक
साग है, और ऐसी-ऐसी चीजें हैं । और उलटा कटोरा भी साथमें है । फिर जब देखा तो वैसी
ही बात मिली । इस प्रकार लौकिक द्रष्टिसे भी विशेषता आ जाती है । एकान्तमें भजन
करते हुए उन्हें ऐसा अनुभव होता है कि अमुक जगह अमुक बात हो रही है । इन बातोंको
सन्त लोग प्रकट नहीं करते थे । ऋद्धि-सिद्धि आ जाती है और कभी कुछ बात प्रकट हो
जाती है तो वे कहते कि चुप रहो, हल्ला मत करो, लोगोंको बताओ मत । अन्धेरेमें,
रातमें दीखने लग जाय—ऐसे
चमत्कार होते हैं, यह तो मामूली चमत्कार है । विशेष बात
यह है कि नामजपसे तत्त्वज्ञान हो जाता है । जो परमात्माका स्वरूप है, स्वयंका
स्वरूप है, इन सबका अनुभव हो जाता है । यह मामूली बात है क्या ? लौकिक चमत्कार दीख जाना कोई बड़ी बात नहीं है ।
‘राम’ नाममें अपार-अनन्त शक्ति भारी हुई है । इसलिये
गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’—भक्तोंके हृदयको जाननेके लिये ये नेत्र हैं ।
तुलसीका
प्रिय ‘राम’ नाम
सुमिरत सुलभ सब
काहू ।
लोक लाहु परलोक
निबाहू ॥
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके ।
राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥
(मानस,
बालकाण्ड २० । २,३)
ये
कहने, सुनने और स्मरण करनेमें बहुत ही अच्छे सुन्दर और मधुर हैं । तुलसीदासजीको
श्रीराम और लक्ष्मणके समान दोनों प्यारे है । ‘राम, राम, राम........’ कहनेमें
आनन्द आता है और ‘राम, राम, राम.......’ सुननेमें आनन्द आता है । मनसे याद करें तो
आनन्द आता है । ऐसे ‘राम’ नामके ये दोनों अक्षर बड़े सुन्दर और श्रेष्ठ हैं ।
गोस्वामीजी महाराज इस प्रकार विलक्षण बात कह रहे हैं । मानो उनको कुछ भी होश नहीं
है । ‘राम’ नाम कैसा है ? सुननेवालोंके सामने द्रष्टान्त ऐसा दिया जाता है, जिसे
सुननेवाले आसानीसे समझ सकें ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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