(गत ब्लॉगसे आगेका)
यह शरीरी न किसीको मारता है और न किसीसे
मारा जाता है अर्थात् यह मरने-मारनेकी क्रियाओंसे सर्वथा रहित है । जो इसको मरने-मारनेवाला
मानते हैं, वे मनुष्य वास्तवमें इसको जानते नहीं
। कारण कि यह शरीरी जन्म-मरणसे रहित, नित्य-निरन्तर रहनेवाला, शाश्वत और अनादि है । शरीरमें तो छः
विकार होते हैं‒उत्पन्न होना, सत्तावाला दीखना, बदलना, बढ़ना, क्षीण होना और नष्ट होना; परन्तु शरीरी इन छहों विकारोंसे रहित है । अतः शरीरके
मारे जानेपर भी यह मारा नहीं जाता । जो मनुष्य शरीरीको इस प्रकार छहों विकारोंसे रहित
जान लेता है, वह कैसे किसको मारे और कैसे किसको मरवाये
? तात्पर्य है कि शरीरी किसी भी
क्रियाका न तो कर्ता (करनेवाला) है और न कारयिता (करवानेवाला) है (२ । १९‒२१) ।
मरना और जीना शरीरोंका होता है, शरीरीका नहीं । जैसे पुराने कपड़े उतारनेसे मनुष्य मर नहीं
जाता और दूसरे नये कपड़े पहननेसे मनुष्यका जन्म नहीं हो जाता, ऐसे ही पुराने शरीरोंको छोड़नेपर शरीरी मर नहीं जाता और
नये शरीरोंमें जानेपर शरीरीका जन्म नहीं हो जाता । शरीरोंके बदलनेपर भी शरीरी ज्यों-का-त्यों
ही रहता है । इस शरीरीको शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा
नहीं सकती । कारण कि यह शरीरी अच्छेद्य, अदाह्य, अक्लेद्य और अशोष्य है । तात्पर्य है
कि काटना, जलाना आदि क्रियाएँ संसारमें ही चलती हैं । शरीरीपर इन
क्रियाओंका किंचिन्मात्र भी असर नहीं पड़ता । यह शरीरी सब कालमें है और सब वस्तुओंमें
है । इसमें आने-जानेकी और हिलनेकी क्रिया नहीं है । देश, काल, क्रिया, वस्तु व्यक्ति, परिस्थिति, घटना आदि तो नहीं रहते, पर शरीरी रहता है । यह शरीरी स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒तीनों शरीरोंसे अतीत है । ये शरीर तो
नहीं रहते, पर शरीरी रहता है (२ । २२‒२५) ।
शरीर पहले
भी नहीं था, पीछे भी नहीं रहेगा तथा बीचमें
भी इसका प्रतिक्षण उत्पत्ति और विनाश हो रहा है । यह नित्यजात और नित्यमृत है । कारण
कि यह प्रतिक्षण पहली अवस्थाको छोड़कर दूसरी अवस्थाको धारण करता रहता है । पहली अवस्थाको
छोड़ना मरना हुआ और दूसरी अवस्थाको धारण करना जन्मना हुआ । इस प्रकार नित्यजात और नित्यमृत
होनेके कारण वास्तवमें इस शरीरकी स्थिति है ही नहीं । उत्पत्ति-विनाशकी
परम्पराको ही स्थिति कह देते हैं । इसलिये जो पैदा हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी, इसका कोई परिहार (निवारण) नहीं कर
सकता (२ । २६-२७) ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘साधन और साध्य’ पुस्तकसे
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