(गत ब्लॉगसे आगेका)
अब इसके बाद प्रकरण बाँधकर नामको एक-एक करके दोनोंसे बड़ा बताते
हैं । पहले अगुणसे नामको बड़ा बतानेका प्रकरण आरम्भ करते हुए गोस्वामीजी महाराज कहते
हैं‒
प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की ।
कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की ॥
(मानस,
बालकाण्ड दोहा, २३ । ३)
मेरा जो कहना है, उसे कोई प्रौढ़िवाद न माने । किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर कहते हैं,
उसे प्रौढ़िवाद कहते हैं । अपने लोगोंमें कहावत है‒‘जिसका
ब्याह उसीका गीत’ मानो जिसका मौका आ जाय,
उसीकी बड़ाई कर देना,
इसको प्रौढ़िवाद कहते हैं । इसलिये गोस्वामीजी महाराज पहले ही कह देते हैं कि सज्जन इस दासकी इस बातको
केवल प्रौढ़िवाद न समझें । साहित्यमें जब वर्णन करते हैं तो विशेषतासे उपमा अलंकार आदि
लगाकर बहुत विलक्षण वर्णन करते हैं । इस तरहसे यहाँ मैं नहीं कहता हूँ । कोई यह न जाने
कि यह बढ़ा-चढ़ाकर कह रहा है । तो ‘क्या कहते हो बाबा’ !
‘कहउँ
प्रतीति प्रीति रुचि मनकी’ तीन बातें हैं । ‘प्रतीति’‒एक तो मेरेको ऐसा ही दीखता है और जैसा मेरेको दीखता है,
वैसा ही कहता हूँ और एक ‘प्रीति’‒दीखता तो है परंतु प्रेम वैसा न हो‒ऐसी बात नहीं है । नाममें
प्रेम भी वैसा ही है और स्वतः मनकी रुचि भी है । गोस्वामीजी महाराज नामके बहुत ज्यादा
प्रेमी हैं । नाममें पहलेसे ही इतने रचे-पचे थे कि जन्मते ही ‘राम’ ऐसा मुँहसे उच्चारण हुआ । इस कारण उनको ‘राम बोला’ कहते थे । ऐसे वे अपने मनकी बात कहते हैं ।
एकु दारुगत देखिअ एकू
।
पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । ४)
भगवान्के दो स्वरूप हैं । वे कौन-कौन-से हैं ?
एक तो है दारुगत । जैसे काठमें आग होती है,
दियासलाईमें आग होती है,
पत्थरमें आग होती है,
पर वह आग दीखती नहीं । ऐसे यह भगवान्का अगुणरूप सर्वत्र रहनेवाला
है, पर यह दीखता नहीं । दूसरा रूप वह है, जो देखनेमें आता है । जैसे आग जलती हुई दीखती है, वह अग्निका
प्रकटरूप है, ऐसे ही सगुण भगवान् अवतार लेकर लीला करते हैं,
वह सगुणरूप प्रकट अग्निकी तरह है । भगवान् मनुष्योंकी तरह ही
आचरण करते हैं । मनुष्यरूपमें प्रकट होनेके कारण वे प्रत्यक्ष दीखते हैं । एक दीखनेमें
न आनेवाला और एक दीखनेमें आनेवाला‒दो रूप अग्निके हुए;
परंतु अग्नि एक ही तत्त्व है । दीखने और न दीखनेसे आग दो नहीं
हुई । ऐसे ही अगुण अर्थात् अप्रकट और सगुण अर्थात् प्रकट‒ये दो रूप परमात्माके हुए,
परंतु परमात्मा एक ही हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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