।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७१, बुधवार 
मानसमें नाम-वन्दना

      


(गत ब्लॉगसे आगेका)

अब इसके बाद प्रकरण बाँधकर नामको एक-एक करके दोनोंसे बड़ा बताते हैं । पहले अगुणसे नामको बड़ा बतानेका प्रकरण आरम्भ करते हुए गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒

प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की ।
कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की ॥
(मानस, बालकाण्ड दोहा, २३ । ३)

मेरा जो कहना है, उसे कोई प्रौढ़िवाद न माने । किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर कहते हैं, उसे प्रौढ़िवाद कहते हैं । अपने लोगोंमें कहावत है‒जिसका ब्याह उसीका गीत’ मानो जिसका मौका आ जाय, उसीकी बड़ाई कर देना, इसको प्रौढ़िवाद कहते हैं । इसलिये गोस्वामीजी महाराज  पहले ही कह देते हैं कि सज्जन इस दासकी इस बातको केवल प्रौढ़िवाद न समझें । साहित्यमें जब वर्णन करते हैं तो विशेषतासे उपमा अलंकार आदि लगाकर बहुत विलक्षण वर्णन करते हैं । इस तरहसे यहाँ मैं नहीं कहता हूँ । कोई यह न जाने कि यह बढ़ा-चढ़ाकर कह रहा है । तो क्या कहते हो बाबा’ !

कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मनकी’ तीन बातें हैं । प्रतीति’‒एक तो मेरेको ऐसा ही दीखता है और जैसा मेरेको दीखता है, वैसा ही कहता हूँ और एक प्रीति’‒दीखता तो है परंतु प्रेम वैसा न हो‒ऐसी बात नहीं है । नाममें प्रेम भी वैसा ही है और स्वतः मनकी रुचि भी है । गोस्वामीजी महाराज नामके बहुत ज्यादा प्रेमी हैं । नाममें पहलेसे ही इतने रचे-पचे थे कि जन्मते ही रामऐसा मुँहसे उच्चारण हुआ । इस कारण उनको राम बोला’ कहते थे । ऐसे वे अपने मनकी बात कहते हैं ।

एकु   दारुगत  देखिअ  एकू ।
पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । ४)

भगवान्‌के दो स्वरूप हैं । वे कौन-कौन-से हैं ? एक तो है दारुगत । जैसे काठमें आग होती है, दियासलाईमें आग होती है, पत्थरमें आग होती है, पर वह आग दीखती नहीं । ऐसे यह भगवान्‌का अगुणरूप सर्वत्र रहनेवाला है, पर यह दीखता नहीं । दूसरा रूप वह है, जो देखनेमें आता है । जैसे आग जलती हुई दीखती है, वह अग्निका प्रकटरूप है, ऐसे ही सगुण भगवान् अवतार लेकर लीला करते हैं, वह सगुणरूप प्रकट अग्निकी तरह है । भगवान् मनुष्योंकी तरह ही आचरण करते हैं । मनुष्यरूपमें प्रकट होनेके कारण वे प्रत्यक्ष दीखते हैं । एक दीखनेमें न आनेवाला और एक दीखनेमें आनेवाला‒दो रूप अग्निके हुए; परंतु अग्नि एक ही तत्त्व है । दीखने और न दीखनेसे आग दो नहीं हुई । ऐसे ही अगुण अर्थात् अप्रकट और सगुण अर्थात् प्रकट‒ये दो रूप परमात्माके हुए, परंतु परमात्मा एक ही हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे