।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७१, मंगलवार 
मानसमें नाम-वन्दना

      


(गत ब्लॉगसे आगेका)

नाम और नामीकी बात पहले आयी थी जिसमें नामको बड़ा बताया । अब नामीका विवेचन करते हैं कि नामी कितने प्रकारके होते हैं । तो कहते हैं‒

अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा ।
अकथ अगाध अनादि अनूपा ॥
                            (मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । १)

परमात्मा एक हैं, परंतु उनके स्वरूप दो हैं‒एक अगुण अर्थात् निर्गुण और दूसरा सगुण । दो स्वरूपोंका अर्थ क्या हुआ ? गुणोंसे रहित जिसको देखते हैं, वह अगुण कहलाता है और जिसे गुणोंके सहित देखते हैं, वह सगुण कहलाता है । ये दोनों उस परमात्माके विशेषण हैं । अब कहते हैं‒अकथ अगाध अनादि अनूपा’ इनका कथन नहीं होता है । पहले भी नाम और नामीको अकथ’ कहा था । अब यहाँ अगुण और सगुण‒दोनों स्वरूपोंको भी अकथ कहते हैं । वाणीके द्वारा ये वर्णनमें नहीं आते । वाणी भी कुण्ठित हो जाती है । अगाध’‒‘गाध’ नाम सरोवरके तलका है । ये ऐसे गहरे हैं कि तलका पता नहीं चलता । ये दोनों कबसे हैं ? कहाँसे हैं ? तो कहते हैं अनादि’‒सदासे हैं और सदा ही रहनेवाले हैं । कालसे जिनका माप-तौल नहीं हो सकता । इतने वर्षोंसे या इतने कल्पोंसे हैं‒ऐसी बात नहीं है और अनूपा’‒इनके लिये कोई उपमा नहीं है । इनको किसकी उपमा दी जाय ! उपमा लगाकर किसीके बराबर नहीं बताये जा सकते ।

निर्गुण ब्रह्मसे नामकी श्रेष्ठता

मोरे    मत    बड़   नामु   दुइ   तें ।
किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २३ । २)

पहले ऐसा कहकर आये हैं कि कौन बड़ा और कौन छोटा है, यह कहनेमें अपराध है । बड़ा और छोटा कहनेका अवसर आया तो अब अपनी सम्मति साफ कह देते हैं कि मेरे मतमें दोनोंसे बड़ा नाम है । आगे चलकर उपसंहारमें भी यही बात कहते हैं‒ब्रह्म राम तें नाम बढ़’ क्यों महाराज ! दोनोंसे नाम बड़ा कैसे हुआ ? यदि दोनों स्वरूप भी नामकी तरह अकथ, अगाध, अनादि, अनूपम हैं तो फिर यह नाम इनसे बड़ा कैसे हो गया ? इसके उत्तरमें कहते हैं कि नाम महाराजने अपनी शक्ति-प्रभावसे अगुण और सगुण दोनोंको अपने वशमें कर लिया है । मानो नाम जपनेसे निर्गुणका बोध हो जाय और सगुण भी प्रकट हो जाय । इसलिये यह दोनोंसे बड़ा है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे