(गत ब्लॉगसे आगेका)
उत्तमा सहजावस्था मध्यमा ध्यानधारणा ।
कनिष्ठा शास्त्रचिन्ता च
तीर्थयात्राऽधमाऽधमा ॥
अवस्थाके संस्कारवालोको समझानेके लिये
इसको ‘सहजावस्था’ कह देते हैं, पर वास्तवमें
यह अवस्था नहीं है,
प्रत्युत अवस्थातीत है ।
कारण कि अवस्था प्रकृतिमें होती है, तत्त्वमें नहीं । वास्तवमें चुप-साधनसे साधक सहजावस्था
(सहज समाधि), तत्त्वज्ञान, जीवन्मुक्ति भगवद्दर्शन आदि जो चाहता
है, वही उसको मिल जाता है । चुप होनेसे साधक स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒तीनों शरीरोंसे सुगमतापूर्वक अतीत हो
जाता है तथा उसका अहम् अपने-आप मिट जाता है । कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि किसी भी योगमार्गका साधक क्यों न हो, चुप-साधन सभीके लियै अत्यन्त उपयोगी है । यह चुप-साधन सभी शक्तियोंका खजाना है; क्योंकि सम्पूर्ण शक्तियाँ अक्रिय तत्त्वसे
ही पैदा होती हैं और उसीमें लीन होती हैं । इस साधनसे एक विलक्षण शान्ति मिलती है, जिससे राग-द्वेषादि दोषोंको दूर करनेकी सामर्थ्य स्वतः
आती है और अनुकूलता-प्रतिकूलताका असर नहीं पड़ता । इतना ही नहीं, जो लाभ धर्ममेघ समाधिसे भी नहीं होता, वह लाभ चुप-साधनसे हो जाता है । तात्पर्य है कि चुप-साधन सम्पूर्ण साधनोंका अन्तिम साधन है, जिससे पूर्णता हो जाती है अर्थात् ‘वासुदेवः सर्वम्’ (सब कुछ परमात्मा ही हैं)‒ऐसा अनुभव
हो जाता है[1] ।
शंका‒करणनिरपेक्ष साधनका जो विवेचन हुआ है, उसका चिन्तन-मनन करेंगे,
तभी तो अपने विवेकका
आदर होगा ! चिन्तन-मनन मन-बुद्धि (करण) से ही होता है,
फिर यह करणनिरपेक्ष
साधन कैसे हुआ ?
समाधान‒साधनको ‘करणनिरपेक्ष’ (विवेकप्रधान) कहा गया है ‘करणरहित’ (क्रियारहित) नहीं । करणनिरपेक्ष साधनमें
जबतक साधकमें किंचित् भी परिच्छिन्नता है, तबतक वह चिन्तन-मनन करता है, पर उसमें मुख्यता चिन्तन-मनन करनेकी
अर्थात् तत्त्वमें मन-बुद्धि लगानेकी न होकर विवेककी ही होती है । अचिन्त्य तत्त्वकी
तरफ दृष्टि रहनेसे उसमें विवेकका आदर मुख्य होता है । तात्पर्य है कि इस विवेचनका लक्ष्य
चिन्तन-मनन, ध्यान, एकाग्रता, समाधि आदिकी तरफ नहीं है प्रत्युत चिन्तन-मनन आदिसे अतीत तथा इनको प्रकाशित करनेवाला
जो वास्तविक तत्त्व है, उसकी तरफ है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘साधन और साध्य’ पुस्तकसे
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