बड़े दुःखकी बात है कि हमारे देशमें बड़े पैमानेपर गोहत्या हो
रही है । अभी दस-बारह वर्षोंमें तो पहलेसे करीब-करीब दुगुनी हत्या होने लग गयी है ।
केरल और कलकत्तामें तो बहुत ज्यादा मात्रामें गोहत्या होती है । केरलके मुख्यमन्त्रीने
कहा था कि बारह महीनोंमें हमारे यहाँ चौदह लाख गायें मारी जाती हैं ! हम अपने यहाँकी
गायें नहीं मारते; जो गायें दूसरे प्रान्तोंसे लायी जाती हैं,
वे यहाँ मारी जाती हैं । बम्बईके देवनार कत्लखानेमें बैल काटे
जाते हैं । कानूनमें तो बूढ़े बैलोंको ही काटनेकी बात है,
पर वहाँ जवान बैल भी काटे जाते हैं‒यह हम लोग देखकर आये हैं
! इससे धर्मकी हानि तो है ही, साथ-साथ
देशकी भी बड़ी भारी हानि है ।
अन्न और वस्त्र‒ये दो चीजें खेतीसे होती हैं । जहाँ अभी बैलोंसे
खेती होती है, वहाँ तो ठीक है; परन्तु जहाँ यन्त्रोंके द्वारा खेती की जाती है, उसके विषयमें
वैज्ञानिकोंका कहना है कि मात्र भूमण्डलमें जितना कोयला,
मिट्टीके तेल, पेट्रोल, डीजल आदि है, वह सब बीस वर्षोंके भीतर-भीतर खत्म हो जायगा ! तब ये यन्त्र
कुछ काम नहीं करेंगे । अभी तो यन्त्रोंके मोहमें आकर बैलोंकी उपेक्षा कर रहे हैं,
उनका नाश कर रहे हैं,
पर जब ये यन्त्र काम नहीं करेंगे और बैल भी नहीं रहेंगे,
तब क्या दशा होगी ! खेती कैसे होगी ?
बिना खेतीके रोटी और कपड़ा कैसे मिलेगा ?
इनके बिना जीवन-निर्वाह कैसे होगा ?
राजस्थानमें तो कई जगह बैलोंके द्वारा ही कुओंसे पानी निकालते
हैं । बैल खत्म हो जानेपर जल कैसे मिलेगा ?
यह बड़ी भारी समस्या है; परंतु
भाई लोग अभी इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं । कितना अनर्थ होगा‒इस तरफ खयाल नहीं है
।
बड़े-बूढ़े बालकोंसे कहते हैं कि पढ़ाई करो,
पर खेलमें बालकोंका जैसा मन लगता है,
वैसा पढ़ाईमें नहीं लगता । इसी तरहसे अभी आप खेलमें लगे हुए हो,
पढ़ाईमें नहीं । अभी अपने भविष्यका
अध्ययन नहीं कर रहे हो, यह बड़ी भारी हानि है । आगे इतनी बड़ी हानि होगी, जिसको
सँभालना मुश्किल हो जायगा ! बम्बईके देवनार कत्लखानेमें हमने देखा कि झुण्ड-के-झुण्ड बैल बहुत दूरतक खड़े हैं
। वहाँ थोडे-से लोग सत्याग्रह कर रहे हैं,
धरना देकर बैठे हैं कि हम बैलोंको काटने नहीं देंगे । उनको पुलिसके
आदमी उठाकर मोटरोंसे और जगह भेज देते हैं । बैलोंको अन्दर ले लेते हैं और कल्ल कर देते
हैं । अब इस तरह सत्याग्रह करनेवाले भाई लोग भी तैयार नहीं होते हैं,
नींदमें सोये हुएकी तरह सोये हुए हैं ! छोटी लड़की विधवा हो जाती
है तो माँ चिन्ता करती है । कारण कि माँ उसके भविष्यको देखती है,
जिसका पता अभी उस लड़कीको नहीं है । इसी तरहकी दशा आज देशकी हो
रही है । यह बड़ी भारी हानिकी बात है । परन्तु पैसे कमाने
और संग्रह करनेके लोभसे अंधे हुए लोग बड़े जोरोंसे गायोंको मारनेमें लग रहे हैं । पता
नहीं कि इतने रुपयोंका क्या करेंगे ? पर
उनको छोड़कर मरेंगे‒यह हमें, आपको,
सबको पता है । दस-बीस लाख, करोड़-दो-करोड़ कम छोड़कर मर जाओ तो क्या फर्क पड़ता है,
और ज्यादा छोड़कर मर जाओ तो क्या फर्क पड़ता है ?
‘सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिदस्ति’‒आँख बन्द होनेपर कुछ भी नहीं है । परन्तु आज इस तरफ खयाल नहीं कर रहे
हैं, चेत नहीं रहे हैं, होशमें
नहीं आ रहे हैं कि आगे देशकी क्या दशा होगी ? सरकार
भी सोचती नहीं है ! बस, किसी तरहसे रुपया मिल जाय । धनके लोभके कारण आज मनुष्य
कितना अंधा हो रहा है‒इसका कोई ठिकाना नहीं है !
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
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