तीन प्रकारके सखा
राम सुकंठ बिभीधन दोऊ ।
राखे सरन जान समु कोऊ ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २५ । १)
अब कहते हैं‒सुग्रीव और विभीषण दोनों भगवान्के मित्र रहे ।
श्रीरामजीने इन दोनोंको अपनी शरणमें रखा, यह सब कोई जानते हैं । भगवान्ने इनको ‘सखा’ कहा है ।
खल मंडली बसहु दिनु
राती ।
सखा धरम निबहइ केहि भाँती ॥
(मानस,
सुन्दरकाण्ड, दोहा ४६ । ५)
विभीषणसे भगवान् गले मिलकर पूछते हैं कि ‘दिन-रात दुष्टोंकी मण्डलीमें बसते हो,
ऐसी दशामें, हे सखे ! तुम्हारा धर्म किस प्रकार निभता है ?’ ऐसे सुग्रीवको
भी अपना सखा मानते हैं । जब विभीषण मिलने आया तो ‘कह प्रभु
सखा बूझिऐ काहा’ भगवान्ने सुग्रीवसे कहा‒बोलो,
सखा ! तुम्हारी क्या सम्मति है ?
ऐसे दोनों ही सखा थे । इनको भगवान्ने अपने शरणमें रखा ।
ये दोनों ही भयभीत थे बेचारे ! सुग्रीव बालीसे डरता था और विभीषणको
भी रावणने जोरसे धमकाया, लात भी मारी और कह दिया कि ‘मेरे नगरमें रहता है और प्रीति तपस्वी (राम) से करता है । निकल
जा यहाँसे ।’ ऐसे रावणने उसे निकाल दिया तो वह भगवान्के शरण आ गया । इन दोनोंको
भगवान्ने अपने मित्र बना लिये । एक बात याद आ गयी‒रामायणमें भगवान्के तीन सखा हैं
। (१) निषादराज गुह, (२) सुग्रीव और (३) विभीषण । इन तीनोंको सखा बनानेका तात्पर्य
क्या है ? भगवान् कहते हैं‒‘मैं सबको सखा बनानेके लिये तैयार हूँ ।’
तीन तरहके भक्त होते हैं । (१) साधक भक्त होता है, (२) सिद्ध
भक्त होता है और (३) विषयी भक्त होता है ।
सांसारिक विषयी मनुष्यको भी भगवान् सखा बना लेते हैं,
साधक भक्तको भी सखा बना लेते हैं और सिद्ध भक्तको भी सखा बना
लेते हैं । इनमें निषादराज गुह सिद्ध भक्त था,
जैसे ज्ञानी भक्त होते हैं,
परमात्माके प्यारे होते हैं,
पूर्णताको प्राप्त‒ऐसे सिद्ध भक्त हैं निषादराज गुह । विभीषण
साधक भक्त है, भगवत्प्राप्तिकी साधना करनेवाला है और सुग्रीव विषयी भक्त है
। भगवान्की भक्ति करता है, पर करता है विपत्ति आनेपर,
दुःख होनेपर और जब दुःख मिट जाता है तो फिर जै रामजीकी ! फिर
कोई भक्ति नहीं । सुग्रीवके विषयमें भगवान् रामने लक्ष्मणजीसे कहा‒
सुग्रीवहुँ सुधि मोरि बिसारी ।
पावा राज कोस पुर नारी ॥
(मानस,
किष्किन्धाकाण्ड, दोहा १८ । ४)
सुग्रीव भी मेरी सुध भूल गया;
क्योंकि उसको राज्य मिल गया,
मकान मिल गया, नगर मिल गया, खजाना मिल गया, स्त्री मिल गयी । अब भजन कौन करे ?
जब विपत्ति थी, डर था, तब भजन करता था । अब भय मिट गया,
मौजसे राज्य करता है,
इसलिये मेरेको भी भूल गया ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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