निसिचर निकर दले रघुनंदन
।
नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४ । ८)
रामजीने राक्षसोंके समूह-के-समूहका नाश कर दिया । राक्षस बहुत
मरे, पर सब नहीं मरे, राजगद्दी होनेपर भी राक्षस रह गये । उनको मारनेके लिये शत्रुघ्नजीको
भेजना पड़ा । कई आफत आयी; परंतु नाम महाराजके लिये कहा गया है कि ‘नामु
सकल कलि कलुष निकंदन’ इन्होंने कलियुगके सारे-के-सारे पापोंका नाश कर दिया । कोई पाप
बाकी नहीं रहा, सबको नष्टकर दिया ।
अब बोलो ! स्वयं राम महाराज बड़े हैं कि नाम महाराज बड़े हैं
! ऐसे रामजीके चरणोंका शरण ले लो अपने तो ! जिसे दूसरे किसीकी
आशा ही न हो, वह भगवान्का प्यारा हो जाता है ।
एक बानि करुनानिधान की ।
सो प्रिय जाके गति न आन की ॥
(मानस,
अरण्यकाण्ड, दोहा १० । ८)
यदि कोई दूसरा सहारा रखता है तो उसको भगवान्की तरफसे पूरा बल
नहीं मिलता । भगवान्पर पूरा विश्वास, भरोसा न करके अपनेको भगवान्से जितना अलग रख लेता है,
भगवान्की उतनी चीज उसे नहीं मिलती । इसलिये दूसरेका सहारा छोड दें और उनके शरण हो जायँ ।
एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास ।
एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास ॥
राम ! राम !! राम !!!
प्रवचन‒९
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति
दीन्हि रधुनाथ ।
नाम उधारे अमित खल वेद बिदित गुन गाथ ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा २४)
श्रीगोस्वामीजी महाराज सगुणसे भी बढ़कर ‘राम’ नामकी महिमा बतलाते आ रहे हैं । यहाँ वही प्रकरण चल रहा है ।
श्रीरघुनाथजी महाराजने तो शबरी, गीध (जटायु) आदि जो सुसेवक थे और जो उनका चिन्तन करते थे,
उनको ही मुक्ति दी;
परंतु उनके नामने अगनित दुष्टोंका उद्धार कर दिया । नामके गुणोंकी
कथा वेदोंमें प्रसिद्ध है ।
शबरीके बहुत दिनोंसे प्रतीक्षा हो रही थी कि ‘भगवान् आवें, भगवान् आवें’ और वह गीध भी भगवान्के चरणोंकी रेखाका चिन्तन करता था । रेखाओंमें
वज्र आदिके चिह्न होते हैं, वे रक्षा करनेवाले होते हैं । ऐसे भगवान्का चिन्तन करनेवाले
दो सेवक रामचरितमानसमें मिलते हैं । उनको ही मुक्ति (गति) दी,
पर ‘नाम उधारे अमित खल’
नामने जिनका उद्धार किया,
वे अमित हैं, कोई मित नहीं, उनकी कोई गणना नहीं है । ‘बेद
बिदित गुन नाथ’‒उनके गुणोंकी
गाथाएँ वेदोंमें, शास्त्रोंमें, स्मृतियोंमें, पुराणोंमें, इतिहासोंमें प्रसिद्ध हैं । ऐसे अनेकोंका उद्धार कर दिया ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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