(गत ब्लॉगसे आगेका)
छोटे-छोटे जीव-जन्तुओंको आप मार देते हो । वे बेचारे कुछ भी
कर नहीं सकते; परन्तु क्या भगवान्के यहाँ न्याय नहीं है ?
निर्बलको नष्ट कर देना कितना बड़ा पाप है ! महाभारतकी कथा आप
सुनो-पढ़ो । युद्धमें दूसरेको चेताते हैं कि सावधान हो जाओ,
मैं बाण चलाता हूँ ! शत्रुपर बाण भी चलाते हैं तो पहले उसको
सावधान करते हैं, फिर बाण चलाते हैं । जो बेचारे कुछ
कर नहीं सकते, अपना बचाव भी नहीं कर सकते और आपका अनिष्ट भी नहीं
कर सकते, ऐसे क्षुद्र जन्तुओंको नष्ट कर देना बड़ा भारी अन्याय, अत्याचार
है । सज्जनो ! इन बातोंपर थोड़ा ध्यान दो,
जरा सोचो । आप अपना बुरा नहीं चाहते हो तो दूसरोंका
बुरा करनेका आपको क्या अधिकार है ? अत: किसीके भी सुखमें बाधा मत दो,
किसीकी भी उन्नतिमें बाधा मत दो,
किसीके भी जन्ममें बाधा मत दो,
किसीका भी भला होनेमें बाधा मत दो । जो बात आप अपने लिये नहीं चाहते, उसको
औरोंके लिये भी मत चाहो । यह सबसे पहला धर्म है ।
जो जीव असमर्थ हैं,
कुछ कर नहीं सकते, उनके साथ अत्याचार करना भगवान्को सह्य नहीं है । जो दूसरोंका
नाश करनेके लिये समर्थ होते हैं, उनको गीताने असुर बताया है‒‘प्रभवन्त्युकर्माणः
क्षयाय जगतोऽहिताः’ (१६ । ९) । जान-जानकर मूक, असमर्थ जीवोंकी हत्या करते हो और चाहते हो कि हमारा भला हो जाय;
कैसे हो जायगा ? कल्याण कैसे हो जायगा ? मैं तो हदयसे
चाहता हूँ कि आपकी दुर्गति न हो,
आपका कल्याण हो, आपका
उद्धार हो ! पर मैं करूँ क्या ?
हिन्दू-संस्कृति जितनी आध्यात्मिक उन्नति बताती है,
उतनी दूसरी कौन-सी संस्कृति बताती है ?
ईसाई, मुसलमान आदि सब अपनी-अपनी टोली बढ़ानेके लिये काम करते हैं कि
हमारे सम्प्रदायको माननेवाले लोगोंकी संख्या ज्यादा हो जाय,
हमारा नाम ज्यादा हो जाय । परन्तु जीवमात्रका
कल्याण हो जाय, उद्धार हो जाय, वह
दुःखोंसे, नरकोंसे, जन्म-मरणसे
छूट जाय, उसको सदाके लिये परम आनन्दकी प्राप्ति हो जाय‒ऐसी
लगन किसमें है ? विश्वशान्तिके लिये, विश्वके
कल्याणके लिये यज्ञ आदि कौन करता है ?
मैंने दिल्लीमें छपा एक पन्ना देखा । उसमें लिखा था कि जो मूर्ति-पूजा
करे, उसको मार दो ! जो मूर्ति-पूजा करते हैं,
वे कौन-सा अन्याय करते हैं ?
कौन-सा पाप करते हैं ?
किसका नुकसान करते हैं ?
वे मूर्ति-पूजा करें तो तुम्हारे क्या बाधा लगी ? अब आप बतायें
कि ऐसा कौन-सा सम्प्रदाय है, जो जीवके कल्याणकी ही बात कहता हो ?
(अपूर्ण)
‒ ‘मातृशक्तिका घोर अपमान’ पुस्तकसे
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