।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७२, बुधवार
मोहिनी एकादशी-व्रत (सबका)
बार-बार नहिं पाइये मनुष-जनमकी मौज




(गत ब्लॉगसे आगेका)

दूसरे जो सांसारिक काम हैं, वे आप करेंगे, तो भी हो जायँगे और आप न करेंगे तो आपके बेटे-पोते इनको कर लेंगे, परंतु आपका कल्याण कौन-से बेटे-पोते कर लेंगे ? आपके पास हजारों-लाखोंकी सम्पत्ति है, बहुत धन है, बड़ा कारोबार है, किंतु आपका शरीर जा रहा है और पीछे कोई कुटुम्बी भी नहीं है तो जितना धन है, उसको राज्य संभाल लेगा, आपकी मिलों, फैक्टरियोंको राज्य चला लेगा, पर आपके उद्धारमें कमी रहेगी तो उसको कौन पूरी करेगा । यह काम दूसरेसे होनेवाला नहीं, इस कामको तो आप स्वयं ही करेंगे तभी होगा, इसलिये मनुष्यको चाहिये कि दूसरे जितने भी काम हैं, उनकी ओर ध्यान न देकर केवल एक आध्यात्मिक उन्नतिकी ओर ही ध्यान दे । नीतिकारोंने भी कहा है‒

कोटिं त्यक्त्वा हरिं स्मरेत् ।

करोड़ों कामोंको छोड़कर एक भगवान्‌का स्मरण करना चाहिये । दूसरे मौके तो हरेकको मिल जाते हैं, पर यह मौका बार-बार नहीं मिलता ।

खादति मोदते नित्यं  शुनकः  शूकरः खरः ।
तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु तादृशी ॥

खाना, पीना, ऐश-आराम करना आदि तो मनुष्य क्या, पशु-पक्षियोंमें भी हो जाता है; परंतु आध्यात्मिक उन्नतिका अवसर मनुष्ययोनिके सिवा और कहीं नहीं है । इसलिये बड़ी सावधानीसे काम लेना चाहिये । आजतकका समय चला गया है, विचार करनेसे दुःख होता है । संतोंने कहा है कि भजनके बिना जो दिन गये, वे हमारे हृदयमें खटकते हैं । किंतु भाइयो ! अब क्या हो !

अब पछिताए होत क्या (जब) चिड़िया चुग गई खेत ।

समय चला गया, उसके लिये पछतानेसे क्या होगा । अब तो यही है कि ‘गई सो गई अब राख रहीको ।’ जो समय बचा है, उसी समयको सावधानीके साथ ऊँचे-से-ऊँचे काममें लगानेकी विशेष चेष्टा करें तो आगे नहीं रोना पड़ेगा । हो गया सो हो गया; परंतु अब आगेके लिये पूरे सावधान हो जायँ, तभी हमारा जीवन सफल हो सकता है ।

आप कहेंगे कि इतने दिन चले गये, अब क्या होगा ? इसका उत्तर यह है कि अब भी निराश होनेकी बात नहीं है । जैसे कुएँमें बहुत रस्सी चली जाती है, पर एक हाथभर भी रस्सी यदि हाथमें रहती है तो उससे लोटेको कुएँसे बाहर निकालकर जल पी लेते हैं; पर यदि वह हाथभर भी रस्सी हाथमें नहीं रहती, वह भी हाथसे छूट जाती है तो फिर ऐसा नहीं है कि वह हाथभर ही नीचे जायगी; वह तो कुएँमें नहीं, कुएँके जलके भी नीचे तहमें चली जायगी । फिर तो उसे निकालनेके लिये बड़ी रस्सी चाहिये, काँटा चाहिये और जब बहुत देर मेहनत करेंगे, तब कहीं वह लोटा-डोरी मिलेगी । नहीं तो, बड़ी कठिनता है । ऐसे ही आजतककी आयु कुएँमें गयी । ऐसी गयी कि काम नहीं आयी; किंतु अब भी जो थोड़ी-सी उम्र शेष है, उसीको अच्छे काममें लगा दें तो हमारा मनुष्य-जीवन सफल हो सकता है; पर यदि आयुका यह बचा हुआ थोड़ा-सा समय भी यों ही बीत गया तो फिर सिवा पश्चात्तापके और कुछ नहीं होगा । क्या पता है कि फिर यह मानव-जीवन कब मिलेगा ।

बार-बार नहिं पाइये मनुष-जनमकी मौज ।

मनुष्य-जन्म बार-बार नहीं मिलता । इसलिये बड़ी सावधानीके साथ बचे हुए समयको आध्यात्मिक उन्नतिमें विशेषरूपसे लगानेकी चेष्टा करनी चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे