श्रीगीतामें कहा है‒
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
दैवी सम्पत्ति मुक्तिके लिये और आसुरी सम्पत्ति बन्धनके लिये
है । दैवी सम्पत्तिमें ‘दैव’ शब्द देवताका नहीं,
परमात्माका वाचक है । उस परमात्माकी जो सम्पत्ति है,
वही दैवी सम्पत्ति है । जैसे संसारके
धनसे संसारकी वस्तुएँ मिलती हैं,
इसी प्रकार यह दैवी सम्पत्ति परमात्माको प्राप्त
करानेवाली है । गीता अध्याय १६
श्लोक १, २, ३ में २६ गुण दैवी सम्पत्तिके हैं । इनको अपनेमें लावें । संसारमें दो
प्रकारके पुरुष होते हैं‒एक तो सद्गुण-सदाचारको मुख्य मानते हैं । दूसरे भगवान्के
भजनको, भगवान्को मुख्य मानते हैं । पहलेवाले कहते हैं‒भगवान्के सम्बन्धकी,
भगवान्के भजनकी क्या आवश्यकता है,
भाव और आचरण अच्छे होने चाहिये;
क्योंकि भाव और आचरण ही श्रेष्ठ हैं । इनका ही संसारमें आदर
है । पर दूसरे जो भगवान्का आश्रय लेनेवाले हैं, उनमें भगवान्के
गुण तो स्वाभाविक ही आयेंगे । जिनमें भगवान्का भजन करते हुए भी अच्छे आचरण
और गुण कम आते हैं, उनका वास्तवमें ध्येय परमात्मा नहीं है । ध्येय सांसारिक पदार्थ
एवं भोग है । भगवान्के बिना अच्छे आचरण, सद्गुण
और सद्भाव आने कठिन हैं; क्योंकि मूल परमात्मा ही नहीं है तो वे किसके आश्रित
रहेंगे । अतएव हर समय भगवान्को याद रखें । हर कार्यके आदि एवं अन्तमें तो भगवान्को
अवश्य याद कर लें । काम करते हुए याद न भी रहे तो हानि नहीं; क्योंकि
उस वक्त कार्यमें तल्लीनता होनेके कारण न परमात्मा याद है, न संसार । वृत्ति केवल एक कार्यमें लगी है । कार्य समाप्त होते
ही भगवान्को फिर याद कर लें । तो फिर सारा काम ही भगवान्का हो जायगा । भगवान्को याद रखनेसे,
भगवान्का आश्रय लेनेसे दैवी सम्पदा अपने-आप आ जाती है । अपने
जान भी नहीं पाते और आ जाती है । भगवान् श्रीरामने वनवासमें शबरीसे कहा‒
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु
धरु मन माहीं ॥
‘मैं तुझे नवधा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर
सुन तथा उसे धारण कर ।’ फिर अन्तमें
कहते हैं‒
सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥
अभी तो सावधानीसे सुनने,
मनमें धारण करनेको कहा । फिर कहते हैं‒‘तुममें सब प्रकारकी भक्ति दृढ़ है ।’ तो धारण करनेको
क्यों कहा ? इसका उत्तर है निरन्तर सेवन करनेसे दृढ़ता आती है । अभिप्राय
है कि शबरीमें नवधा भक्ति तो दृढ़तासे है, पर भक्तिके
नौ प्रकार हैं यह उसे पता नहीं है । वह भजन करनेवाली है,
व्याख्यान देनेवाली नहीं है । उसमें स्वाभाविक ही भक्ति आ
गयी है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग’ पुस्तकसे
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