(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒गायमें
सब देवताओंका निवास है, फिर
वे गायकी हत्या क्यों होने देते हैं ?
उत्तर‒गायमें देवताओंका निवास पवित्रताकी दृष्टिसे कहा कहा गया है । इसका अर्थ यह नहीं
है कि देवता गायमें साक्षात्रूपसे निवास करते हैं । जैसे दियासलाईमें अग्नि रहती है,
पर उसको रुईके भीतर रख दिया जाय तो उससे रुई नहीं जलती;
क्योंकि अग्नि दियासलाईमें अप्रकटरूपसे,
निराकार-रूपसे रहती है । परमात्मा सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें
रहते हैं, फिर भी प्राणी मरते हैं; क्योंकि परमात्मा निर्लिप्तरूपसे,
अप्रकटरूपसे रहते हैं । ऐसे ही गायके शरीरमें सम्पूर्ण देवता
अप्रकटरूपसे, निर्लिप्तरूपसे रहते हैं । जैसे परमात्माको सम्पूर्ण प्राणियोंके
हृदयमें विद्यमान कहनेका तात्पर्य है कि हृदय पवित्र और परमात्माका उपलब्धि-स्थान है,
ऐसे ही देवताओंको गायके शरीरमें विद्यमान
कहनेका तात्पर्य है कि गाय महान् पवित्र है और उसकी सेवा-पूजासे सम्पूर्ण देवताओंकी
सेवा-पूजा हो जाती है ।
प्रश्न‒गोसेवासे
क्या लाभ है ?
उत्तर‒जैसे
भगवान्की सेवा करनेसे त्रिलोकीकी सेवा होती है, ऐसे
ही निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे विश्वमात्रकी सेवा होती है; क्योंकि
गाय विश्वकी माता है । गायकी सेवासे
लौकिक और पारलौकिक‒दोनों तरहके लाभ होते हैं । गायकी सेवासे अर्थ,
धर्म, काम और मोक्ष‒ये चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं । रघुवंश भी
गायकी सेवासे ही चला था ।
प्रश्न‒गोरक्षाके
लिये क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒गायोंकी
रक्षाके लिये उनको अपने घरोंमें रखना चाहिये और उनका पालन करना चाहिये । गायके ही दूध-घीका
सेवन करना चाहिये, भैंस आदिका नहीं । गायोंकी रक्षाके उद्देश्यसे ही
गोशालाएँ बनानी चाहिये, दूधके उद्देश्यसे नहीं । जितनी गोचर-भूमियाँ हैं, उनकी
रक्षा करनी चाहिये तथा सरकारसे और गोचर-भूमियाँ छुड़ाई जानी चाहिये । सरकारकी गोहत्या-नीतिका
कड़ा विरोध करना चाहिये और वोट उनको ही देना चाहिये, जो
पूरे देशमें पूर्णरूपसे गोहत्या बंद करनेका वचन दें ।
खेती करनेवाले सज्जनोंको चाहिये कि वे गाय,
बछड़ा, बैल आदिको बेचे नहीं । गाय और माय
बेचनेकी नहीं होती । जबतक गाय दूध और बछड़ा देती है,
बैल काम करता है, तबतक उनको रखते हैं । जब वे बूढ़े हो जाते हैं,
तब उनको बेच देते हैं‒यह कितनी कृतघ्नताकी,
पापकी बात है ! गाँधीजीने ‘नवजीवन’ अखबारमें
लिखा था कि ‘बूढ़ा बैल जितना घास (चारा) खाता है उतना गोबर और गोमूत्र पैदा कर देता
है अर्थात् अपना खर्चा आप ही चुका देता है ।’
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘किसान और
गाय’ पुस्तकसे
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