।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७२, रविवार
व्रत-पूर्णिमा

गायकी महत्ता और आवश्यकता



गाय विश्वकी माता है‒‘गावो विश्वस्य मातरः ।’ सूर्य, वरुण, वायु आदि देवताओंको यज्ञ, होममें दी हुई आहुतिसे जो खुराक, पुष्टि मिलती है, वह गायके घीसे ही मिलती है । होममें गायके घीकी ही आहुति दी जाती है, जिससे सूर्यकी किरणें पुष्ट होती हैं । किरणें पुष्ट होनेसे वर्षा होती है और वर्षासे सभी प्रकारके अन्न, पौधे, घास आदि पैदा होते हैं, जिनसे सम्पूर्ण स्थावर-जंगम, चर-अचर प्राणियोंका भरण-पोषण होता है[*]

हिन्दुओंके गर्भाधान, जन्म, नामकरण आदि जितने संस्कार होते हैं, उन सबमें गायके दूध, घी, गोबर आदिकी मुख्यता होती है । द्विजातियोंको जो यज्ञोपवीत दिया जाता है, उसमें गायका पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र) का सेवन कराया जाता है । यज्ञोपवीत-संस्कार होनेपर वे वेद पढ़नेके अधिकारी होते हैं । अच्छे ब्राह्मणका लड़का भी यज्ञोपवीत-संस्कारके बिना वेद पढ़नेका अधिकारी नहीं होता । जहाँ विवाह-संस्कार होता है, वहाँ भी गायके गोबरका लेप करके शुद्धि करते हैं । विवाहके समय गोदानका भी बहुत माहात्म्य है । पुराने जमानेमें वाग्दान (सगाई) के समय बैल दिया जाता था । जननाशौच और मरणाशौच मिटानेके लिये गायका गोबर और गोमूत्र ही काममें लिया जाता है; क्योंकि गायके गोबरमें लक्ष्मीका और गोमूत्रमें गंगाजीका निवास है ।

जब मनुष्य बीमार हो जाता है, तब उसको गायका दूध पीनेके लिये देते हैं; क्योंकि गायका दूध तुरंत बल, शक्ति देता है । अगर बीमार मनुष्यको अन्न भी न पचे तो उसके पास गायके घी और खाद्य पदार्थोंकी अग्निमें आहुति देनेपर उसके धुएँसे उसको खुराक मिलती है । जब मनुष्य मरने लगता है, तब उसके मुखमें तुलसीमिश्रित गंगाजल या गायका दही देते हैं । कारण कि कोई मनुष्य यात्राके लिये रवाना होता है तो उस समय गायका दही लेना मांगलिक होता है । जो सदाके लिये यहाँसे रवाना हो रहा है, उसको गायका दही अवश्य देना चाहिये, जिससे परलोकमें उसका मंगल हो । अन्तकालमें मनुष्यको जैसे गंगाजल देनेका माहात्म्य है, वैसा ही माहात्म्य गायका दही देनेका है ।

वैतरणीसे बचनेके लिये गोदान किया जाता है । श्राद्ध-कर्ममें गायके दूधकी खीर बनायी जाती है; क्योंकि पवित्र होनेसे इस खीरसे पितरोंकी बहुत ज्यादा तृप्ति होती है । मनुष्य, देवता, पितर आदि सभीको गायके दूध, घी आदिसे पुष्टि मिलती है । अतः गाय विश्वकी माता है ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)
        ‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे



[*] अग्नौ प्रास्ताहुतिः सम्यगादित्यमुपतिष्ठते ।
   आदित्याज्जायते  वृष्टिर्वृष्टेरन्नं ततः प्रजा ॥
                                          (मनु ३ । ७६)