(गत ब्लॉगसे आगेका)
गायके अंगोंमें सम्पूर्ण देवताओंका निवास बताया गया है । गायकी
छाया भी बड़ी शुभ मानी गयी है । यात्राके समय गाय या साँड़
दाहिने आ जाय तो शुभ माना जाता है और उसके दर्शनसे यात्रा सफल हो जाती है ।
दूध पिलाती गायका दर्शन बहुत शुभ माना जाता है‒‘सुरभी सनमुख
सिसुहि पिआवा’ (मानस,
बाल॰ ३०३ । ३) गाय महान् पवित्र होती है । उसके शरीरका स्पर्श करनेवाली
हवा भी पवित्र होती है । उसके गोबर-गोमूत्र भी पवित्र होते हैं । जहाँ गाय बैठती है, वहाँकी
भूमि पवित्र होती है । गायके चरणोंकी रज (धूल) भी पवित्र होती है ।
गायसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष‒इन चारोंकी सिद्धि होती है । गोपालनसे,
गायके दूध, घी, गोबर
आदिसे धनकी वृद्धि होती है । कोई भी धार्मिक कृत्य गायके बिना नहीं होता । सम्पूर्ण धार्मिक कार्योंमें गायका दूध,
दही, घी, गोबर और गोमूत्र काममें आते हैं । कामनापूर्तिके लिये किये जानेवाले
यज्ञोंमें भी गायका घी आदि काममें आता है । बाजीकरण आदि प्रयोगोंमें भी गायके दूध और
घीकी मुख्यता रहती है । निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे मोक्ष
होता है । गायकी सेवा करनेमात्रसे अन्तःकरण निर्मल होता है । भगवान् श्रीकृष्णने भी
बिना जूतीके गायोंको चराया था,
जिससे उनका नाम ‘गोपाल’ पड़ा
। प्राचीन कालमें ऋषिलोग वनमें
रहते हुए अपने पास गायें रखा करते थे । गायके दूध-घीका सेवन करनेसे उनकी बुद्धि बड़ी
विलक्षण होती थी, जिससे वे
बड़े-बड़े ग्रन्थोंकी रचना किया करते थे । आजकल तो उन ग्रन्थोंको ठीक-ठीक समझनेवाले भी
कम हैं । गायके दूध-घीसे वे दीर्घायु होते थे । गायके घीका
एक नाम ‘आयु’ भी है । बड़े-बड़े राजालोग भी उन ऋषियोंके पास आते थे और उनकी सलाहसे राज्य चलाते थे ।
गाय इतनी पवित्र है कि देवताओंने भी उसको अपना निवास-स्थान बनाया
है । जिसका गोबर और गोमूत्र भी इतना पवित्र है,
फिर वह स्वयं कितनी पवित्र होगी ! एक
गायका पूजन करनेसे सब देवताओंका पूजन हो जाता है, जिससे
सब देवताओंको पुष्टि मिलती है । पुष्ट हुए देवताओंके द्वारा सम्पूर्ण सृष्टिका संचालन, पालन, रक्षण
होता है ।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न‒गायके
घीसे आहुति देनेपर वर्षा होती है‒ऐसा शास्त्रोंमें आता है । आजकल प्रायः लोग गायके
घीसे यज्ञ, होम आदि नहीं करते
तो भी वर्षा होती ही है‒इसका कारण क्या है ?
उत्तर‒प्राचीन कालसे जो यज्ञ,
होम होते आये हैं, उनका संग्रह अभी बाकी है । उसी संग्रहसे अभी वर्षा हो रही है
। परंतु अभी यज्ञ आदि न होनेसे वैसी व्यवस्था नहीं रही है,
इसलिये कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि हो रही है । वर्षा
भी बहुत कम हो रही है ।
प्रश्न‒वर्षा
अग्निमें आहुति देनेसे ही होती है या कर्तव्यका पालन करनेसे होती है ?
उत्तर‒कर्तव्य-पालनके
अन्तर्गत यज्ञ, होम, दान, तप आदि
सब कर्म आ जाते हैं । गीताने भी यज्ञ आदिको कर्तव्य-कर्मके अन्तर्गत ही माना है । अगर
मनुष्य अपने कर्तव्यका पालन करेंगे तो सूर्य, वरुण, वायु आदि
देवता भी अपने कर्तव्यका पालन करेंगे और समयपर वर्षा करेंगे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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