।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल पूर्णिमा, वि.सं.२०७२, सोमवार
पूर्णिमा, श्रीबुद्ध-पूर्णिमा, वैशाख-स्नान समाप्त
गायकी महत्ता और आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका)
गायके अंगोंमें सम्पूर्ण देवताओंका निवास बताया गया है । गायकी छाया भी बड़ी शुभ मानी गयी है । यात्राके समय गाय या साँड़ दाहिने आ जाय तो शुभ माना जाता है और उसके दर्शनसे यात्रा सफल हो जाती है । दूध पिलाती गायका दर्शन बहुत शुभ माना जाता है‒‘सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा’ (मानस, बाल ३०३ । ३) गाय महान् पवित्र होती है । उसके शरीरका स्पर्श करनेवाली हवा भी पवित्र होती है । उसके गोबर-गोमूत्र भी पवित्र होते हैं । जहाँ गाय बैठती है, वहाँकी भूमि पवित्र होती है । गायके चरणोंकी रज (धूल) भी पवित्र होती है ।

गायसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष‒इन चारोंकी सिद्धि होती है । गोपालनसे, गायके दूध, घी, गोबर आदिसे धनकी वृद्धि होती है । कोई भी धार्मिक कृत्य गायके बिना नहीं होता । सम्पूर्ण धार्मिक कार्योंमें गायका दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र काममें आते हैं । कामनापूर्तिके लिये किये जानेवाले यज्ञोंमें भी गायका घी आदि काममें आता है । बाजीकरण आदि प्रयोगोंमें भी गायके दूध और घीकी मुख्यता रहती है । निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे मोक्ष होता है । गायकी सेवा करनेमात्रसे अन्तःकरण निर्मल होता है । भगवान् श्रीकृष्णने भी बिना जूतीके गायोंको चराया था, जिससे उनका नाम ‘गोपाल’ पड़ा । प्राचीन कालमें ऋषिलोग वनमें रहते हुए अपने पास गायें रखा करते थे । गायके दूध-घीका सेवन करनेसे उनकी बुद्धि बड़ी विलक्षण होती थी, जिससे वे बड़े-बड़े ग्रन्थोंकी रचना किया करते थे । आजकल तो उन ग्रन्थोंको ठीक-ठीक समझनेवाले भी कम हैं । गायके दूध-घीसे वे दीर्घायु होते थे । गायके घीका एक नाम ‘आयु’ भी है । बड़े-बड़े राजालोग भी उन ऋषियोंके पास आते थे और उनकी सलाहसे राज्य चलाते थे ।

गाय इतनी पवित्र है कि देवताओंने भी उसको अपना निवास-स्थान बनाया है । जिसका गोबर और गोमूत्र भी इतना पवित्र है, फिर वह स्वयं कितनी पवित्र होगी ! एक गायका पूजन करनेसे सब देवताओंका पूजन हो जाता है, जिससे सब देवताओंको पुष्टि मिलती है । पुष्ट हुए देवताओंके द्वारा सम्पूर्ण सृष्टिका संचालन, पालन, रक्षण होता है ।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न‒गायके घीसे आहुति देनेपर वर्षा होती है‒ऐसा शास्त्रोंमें आता है । आजकल प्रायः लोग गायके घीसे यज्ञ, होम आदि नहीं करते तो भी वर्षा होती ही है‒इसका कारण क्या है ?

उत्तरप्राचीन कालसे जो यज्ञ, होम होते आये हैं, उनका संग्रह अभी बाकी है । उसी संग्रहसे अभी वर्षा हो रही है । परंतु अभी यज्ञ आदि न होनेसे वैसी व्यवस्था नहीं रही है, इसलिये कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि हो रही है । वर्षा भी बहुत कम हो रही है ।

प्रश्न‒वर्षा अग्निमें आहुति देनेसे ही होती है या कर्तव्यका पालन करनेसे होती है ?

उत्तरकर्तव्य-पालनके अन्तर्गत यज्ञ, होम, दान, तप आदि सब कर्म आ जाते हैं । गीताने भी यज्ञ आदिको कर्तव्य-कर्मके अन्तर्गत ही माना है । अगर मनुष्य अपने कर्तव्यका पालन करेंगे तो सूर्य, वरुण, वायु आदि देवता भी अपने कर्तव्यका पालन करेंगे और समयपर वर्षा करेंगे ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)
        ‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे