(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒विदेशोंमें
यज्ञ आदि नहीं होते, फिर
वहाँ देवतालोग वर्षा क्यों करते हैं ?
उत्तर‒जिन देशोंमें गायें
नहीं हैं अथवा जिन देशोंके लोग यज्ञ आदि नहीं करते,
वहाँ भी अपने कर्तव्य-कर्मका पालन तो होता ही है । वहाँके लोग
अपने कर्तव्यका पालन करते हैं तो देवता भी अपने कर्तव्यका पालन करते हैं अर्थात् वहाँ
वर्षा आदि करते हैं ।
प्रश्न‒ट्रैक्टर
आदि यन्त्रोंसे खेती हो जाती है, फिर
गाय-बैलकी क्या जरूरत है ?
उत्तर‒वैज्ञानिकोंने
कहा है कि अभी जिस रीतिसे तेल खर्च हो रहा है,
ऐसे खर्च होता रहा तो लगभग बीस वर्षोंमें ये तेल आदि सब समाप्त
हो जायेंगे, जमीनमें तेल नहीं रहेगा । जब तेल ही नहीं रहेगा,
तब यन्त्र कैसे चलेंगे ? उस समय गाय-बैल ही काम आयेंगे ।
प्रश्न‒तेल
नहीं रहेगा तो उसकी जगह कोई नया आविष्कार हो जायगा, फिर
गायोंकी क्या आवश्यकता ?
उत्तर‒नया आविष्कार हो
अथवा न हो, पर जो चीज अभी अपने हाथमें है,
उसको क्यों नष्ट करें ?
जो चीज अभी हाथमें नहीं है, भविष्यपर
निर्भर है, उसको लेकर अभीकी चीजको नष्ट करना बुद्धिमानी नहीं
है । जैसे,
गर्भके बालककी आशासे गोदके बालकको समाप्त करना बुद्धिमानी नहीं
है, प्रत्युत बड़ी भारी भूल है, महान् मूर्खता है, घोर पाप, अन्याय है । गायोंकी परम्परा तो युगोंतक चलती रहेगी,
पर आविष्कारोंकी परम्परा भी चलती रहेगी‒इसका क्या भरोसा ?
अगर विश्वयुद्ध छिड़ जाय तो क्या आविष्कार सुरक्षित रह सकेंगे
? पीछेको कदम तो उठा लिया और आगे जगह मिली नहीं तो क्या दशा होगी ?
इसलिये आगे आविष्कार होगा‒इस विचारको लेकर गायोंका नाश नहीं
करना चाहिये, प्रत्युत प्रयत्नपूर्वक उनकी रक्षा करनी चाहिये । उत्पादनके
जितने उपाय हों, उतना ही बढ़िया है । उनको नष्ट करनेसे क्या लाभ ? अगर आगे आविष्कार
हो भी जाय तो भी गायें निरर्थक नहीं हैं । गायोंके गोबर-गोमूत्रसे अनेक रोग दूर होते
हैं । उनसे बनी खादके समान कोई खाद नहीं है । गायके दूधके समान कोई दूध नहीं है । गायसे
होनेवाले लाभोंकी गणना नहीं की जा सकती ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
|