(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒भैंसे
और ऊँटके द्वारा भी खेती हो सकती है, फिर
गाय-बैलकी क्या जरूरत ?
उत्तर‒खेतीमें जितनी
प्रधानता बैलोंकी है, उतनी प्रधानता अन्य किसीकी भी नहीं है । भैंसेके द्वारा भी खेती
की जाती है, पर खेतीमें जितना काम बैल कर सकता है,
उतना भैंसा नहीं कर सकता । भैंसा बलवान् तो होता है,
पर वह धूप सहन नहीं कर सकता । धूपमें चलनेसे वह जीभ निकाल देता
है, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहता है । कारण कि भैंसेमें सात्त्विक बल नहीं होता,
जबकि बैलमें सात्त्विक बल होता है । बैलोंकी अपेक्षा भैंसे कम
भी होते हैं । ऊँटसे भी खेती की जाती है, पर ऊँट भैंसोंसे भी कम होते हैं और बहुत महँगे होते हैं । खेती
करनेवाला हरेक आदमी ऊँट नहीं खरीद सकता । आजकल बड़ी संख्यामें अच्छे-अच्छे जवान बैल
मारे जानेके कारण बैल भी महँगे हो गये हैं,
तो भी वे ऊँट‒जितने महँगे नहीं हैं । यदि घरोंमें गायें रखी
जायँ तो बैल घरोंमें ही पैदा हो जाते हैं,
खरीदने नहीं पड़ते । विदेशी गायोंके जो बैल होते हैं,
वे खेतीमें काम नहीं आ सकते;
क्योंकि उनके कंधे न होनेसे उनपर जुआ नहीं रखा जा सकता । वे
गरमी भी सहन नहीं कर सकते । वास्तवमें जिस देशका पशु है, वह
उसी देशमें काम आ सकता है । अतः अपने देशकी गायोंका पालन करना चाहिये, उनकी
विशेषरूपसे रक्षा करनी चाहिये ।
बैलोंसे जितनी बढ़िया खेती होती है,
उतनी ट्रैक्टरोंसे नहीं होती । देखनेमें तो ट्रैक्टरोंसे और
रासायनिक खादसे खेती जल्दी हो जाती है, पर जल्दी होनेपर भी वह बढ़िया नहीं होती । बैलोंसे की गयी खेतीका अनाज बड़ा पवित्र होता है । गोबर-गोमूत्रकी
खादसे जो अन्न पैदा होता है, वह बड़ा पवित्र, शुद्ध, निर्मल
होता है ।
खेतका और गायका घनिष्ठ सम्बन्ध है । खेतमें पैदा होनेवाले घास
आदिसे गायकी पुष्टि होती है और गायके गोबर-मूत्रसे खेतकी पुष्टि होती है । विदेशी खाद डालनेसे कुछ ही वर्षोंमें जमीन खराब हो जाती है अर्थात्
उसकी उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है । परंतु गोबर-गोमूत्रसे जमीनकी उपजाऊ शक्ति ज्यों-की-त्यों
बनी रहती है । इसलिये पुराने जमानेमें खेतोंमें खाद डालनेकी प्रथा ही नहीं थी और सौ-सौ
वर्षोंतक खेतोंमें अन्न पैदा होता रहता था । विदेशोंमें रासायनिक खादसे बहुत-से खेत
खराब हो गये हैं, जिनको उपजाऊ बनानेके लिये वे गोबर काममें ले रहे
हैं ।
प्रश्न‒गायके
दूधकी क्या महिमा है ?
उत्तर‒गायका दूध जितना
सात्त्विक होता है, उतना सात्त्विक दूध किसीका भी नहीं होता । हमारे देशकी गायें सौम्य और सात्त्विक होती हैं, इसलिये
उनका दूध भी सात्त्विक होता है । जिसको पीनेसे बुद्धि तीक्षण होती है और स्वभाव सौम्य, शान्त
होता है । विदेशी गायोंका
दूध तो ज्यादा होता है, पर उनके दूधमें उतनी सात्त्विकता नहीं होती तथा उनमें गुस्सा
भी ज्यादा होता है । अतः उनका दूध पीनेसे मनुष्यका स्वभाव भी क्रूर होता है । विदेशी
गायोंके दूधमें घी कम होता है और वे खाती भी ज्यादा हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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