(गत ब्लॉगसे आगेका)
भैंसके दूधमें घी ज्यादा होनेसे वह शरीरको मोटा तो करता है,
पर वह दूध सात्त्विक नहीं होता । गाड़ी चलानेवाले जानते ही हैं
कि गाड़ीका हार्न सुनते ही गायें सड़कके किनारे हो जाती हैं,
जबकि भैंस सड़कमें ही खड़ी रहती है । इसलिये भैंसके दूधसे बुद्धि
स्थूल होती है । सैनिकोंके घोड़ोंको गायका दूध पिलाया जाता है,
जिससे वे घोड़े बहुत तेज होते हैं । एक बार सैनिकोंने परीक्षाके
लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध पिलाया, जिससे घोड़े खूब मोटे हो गये । परंतु जब नदी पार करनेका काम पड़ा,
तब वे घोड़े पानीमें बैठ गये ! भैंस पानीमें बैठा करती है,
इसलिये वही स्वभाव घोड़ोंमें भी आ गया ।
ऊँटनीका दूध भी निकलता है,
पर उस दूधका दही, मक्खन होता ही नहीं । उसका दूध तामसी होनेसे दुर्गतिमें ले जानेवाला
होता है । स्मृतियोंमें ऊँट, कुत्ते, गधे
आदिको अस्पृश्य बताया गया है । बकरीका दूध नीरोग करनेवाला एवं पचनेमें हलका होता है,
पर वह गायके दूधकी तरह बुद्धिवर्धक और सात्त्विक बात समझनेके
लिये बल देनेवाला नहीं होता ।
गायके दूधसे निकला घी ‘अमृत’ कहलाता
है । स्वर्गकी अप्सरा उर्वशी राजा
पुरूरवाके पास गयी तो उसने अमृतकी जगह गायका घी पीना ही स्वीकार किया‒‘घृतं मे वीर भक्ष्यं स्यात्’ (श्रीमद्भा॰ ९ । १४ । २२) ।
प्रश्न‒गायके
गोबर और गोमूत्रकी क्या महिमा है ?
उत्तर‒गायके
गोबरमें लक्ष्मीजीका और गोमूत्रमें गंगाजीका निवास माना गया है । इसलिये गायके गोबर-गोमूत्र भी बड़े पवित्र हैं । गोबरसे लिपे
हुए घरोंमें प्लेग, हैजा आदि भयंकर बीमारियों नहीं होतीं । इसके सिवाय युद्धके समय
गोबरसे लिपे हुए मकानोंपर बमका उतना असर नहीं होता,
जितना सीमेंट आदिसे बने हुए मकानोंपर होता है ।
गोबरमें जहर खींचनेकी विशेष शक्ति होती है । काशीमें कोई आदमी साँप काटनेसे मर गया । लोग उसकी दाह-क्रिया
करनेके लिये उसको गंगाके किनारे ले गये । वहाँ एक साधु रहता था । उसने पूछा कि इस आदमीको
क्या हुआ ? लोगोंने कहा कि यह साँप काटनेसे मरा है । साधुने कहा कि यह मरा
नहीं है, तुमलोग गायका गोबर ले आओ । गोबर लाया गया । साधुने जमीनपर गोबर
डालकर उसपर उस आदमीको लिटा दिया और उसकी नासिकाको छोड़कर पूरे शरीरपर गोबर थोप दिया
। आँखें मीचकर, उनपर कपड़ा रखकर उसके ऊपर भी गोबर रख दिया । आधे घंटेके बाद दूसरी
बार उसपर गोबर थोप दिया । कुछ घंटोंमें उस आदमीके श्वास चलने लगे और वह जी उठा ! अगर
किसी अंगमें बिच्छू काट जाय तो जहाँतक विष चढ़ा हुआ है,
वहाँतक गोबर लगा दिया जाय तो विष उतर जाता है । हमने सुना है कि शरीरमें कोई भी रोग हो, जमीनमें
गहरा गड्ढा खोदकर उसमें रोगीको खड़ा कर दे और उसके गलेतक वह गड्ढा गोबरसे भर दे । लगभग
आधे घंटेतक अथवा जितनी देरतक रोगी सुगमतापूर्वक सहन कर सके, उतनी
देरतक वह गड्ढेमें खड़ा रहे । जबतक रोग शान्त न हो जाय, तबतक
प्रतिदिन यह प्रयोग करता रहे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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