अस्ति-तत्त्व
संसारमें जो जड़ पदार्थोंकी सत्ता दीख रही है,
उनका होना सिद्ध हो रहा है,
वह उसी परमात्मासे है । उनको द्योतन करनेवाला सत्-तत्त्व ही
पदार्थोंके सम्बन्धसे ‘सत्’ की अपेक्षा स्थूल होनेसे अस्तिस्वरूपसे कहा जाता है ।
संसारमें जितनी भी जड़ वस्तुएँ हैं,
ये सब उत्पन्न होती हैं,
बीचमें सत्तारूपसे दीखती हैं,
बढ़ती हैं, परिवर्तित होती हैं,
क्षीण होती हैं और नष्ट हो जाती हैं । उन उत्पत्ति-विनाशशील सम्पूर्ण वस्तुओंमें जो एक सत्ता प्रतीत होती
है, वही अस्तिरूपसे कही जाती है । यहाँ यह समझनेकी बात है कि किसी एक
पदार्थको लेकर उसकी उत्पत्तिके बाद जो उसका अस्तित्व दीखता है, वह
तो उस पदार्थके नष्ट होनेपर नष्ट हो जाता है; क्योंकि
वह विकार है । पर उन पदार्थोंके अभाव हो जानेपर भी सब वस्तुओंमें सामान्य रीतिसे जो
एक होनापना प्रतीत होता है, वह होनापना ही असली अस्तिस्वरूप है । वह अस्तिस्वरूप नित्य विद्यमान रहता है । जैसे ‘यह मनुष्य है’,
‘यह पक्षी है’, ‘यह देश है’‒इन सबमें ‘है’ अनुस्यूत है । वस्त्रमें धागा सर्वत्र एक है । मिट्टीके बरतनोंमें
मिट्टी सबमें एक है । इसी तरह यह अस्ति-तत्त्व सबमें अनुस्यूत है । यह सर्वत्र व्यापक
है, परिपूर्ण है । जब घड़ा फूट जाता है तो घड़ेका अभाव होनेपर भी उसके टुकड़े तो रहते
ही हैं । ऐसे ही पदार्थोंका अभाव होनेपर भी उनका रूपान्तरमें अस्तिपना वैसे ही वर्तमान
रहता है ।
इसलिये जो भी उत्पत्ति-विनाशवाली वस्तुएँ हैं,
उन सबमें जो सत्ता प्रतीत होती है,
वह वस्तुतः उन चीजोंका आधार है,
पर दीखनेमें ऐसा प्रतीत होता है कि वह चीज पहले है और बादमें
उसकी सत्ता है । यही तो परमात्माकी दिव्य प्रकृतिकी अविद्या‒मायाशक्तिका विलक्षण परदा
है ।
भाति-तत्त्व
जो सम्पूर्ण वस्तुओंकी प्रतीति होती है, वस्तुएँ
दीखती हैं, उनका अनुभव होता है‒यह भाति है । भूत, भविष्यत्, वर्तमान‒सबमें सत्ता प्रतीत हो रही है । एक पदार्थका होना सत्ता है और उसका दीखना, अनुभव
होना भाति है । विदेशकी वस्तुएँ
यहाँ नहीं दीखतीं; पर ‘वहाँ वह चीज है’‒इस प्रकार सामान्य भाव तो बुद्धिमें आता
ही है तथा साथ ही उन वस्तुओंका न जाना भी प्रतीत हो ही रहा है । जिससे सम्पूर्ण वस्तुओंकी
प्रतीति होती है, वस्तुएँ प्रकाशित होती हैं,
उसे भाति-तत्त्व कहते हैं । यह परमात्माका निर्गुण चित्-तत्त्व
ही मायाके सम्बन्धसे प्रकाशरूपसे प्रतीत हो रहा है । यह प्रकाश महत्तत्त्वके मिश्रणसे
सामान्य ज्ञानस्वरूप है, जिसमें कि घट-पटादि समस्त पदार्थोंका भान हो रहा है । पदार्थोंका
ज्ञान-अज्ञान, लौकिक प्रकाश और अन्धकारका ज्ञान,
वस्तुओंका भाव-अभाव,
जाग्रत् स्वप्न, सुषुप्ति‒इन अवस्थाओंका ज्ञान-अज्ञान‒ये सभी जिस एक बुद्धि-तत्त्वसे
प्रकाशित हो रहे हैं, समझनेमें आ रहे हैं । वह निर्गुण परमात्माका चित्-तत्त्व ही
महत्तत्त्वको लेकर भातिरूपसे कहा जाता है । वह भाति-तत्त्व महत्तत्त्वका सम्बन्ध होनेके
कारण चित्-तत्त्वकी अपेक्षा स्थूल है ।
इसमें भी अस्तिकी भाँति वस्तुओंका ज्ञान वस्तुओंके बाद प्रतीत
होता है, पर वास्तवमें वस्तुओंके ज्ञान और अज्ञान दोनोंको ही यह भाति-तत्त्व सामान्यरूपसे
निरन्तर प्रकाशित कर रहा है । यही सगुण परमात्माका ‘भाति’
रूप है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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