।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
शुद्ध आषाढ़ कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७२, शनिवार
भगवत्-तत्त्व


(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रिय-तत्त्व

संसारके पदार्थ मनको अच्छे लगते हैं, यह अच्छा लगना ही ‘प्रिय’ है । वस्तुमात्रमें ही एक प्रियता प्रतीत हो रही है; क्योंकि उपयोगी होनेके कारण वह किसी-न-किसीके लिये प्रिय है ही । कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, चाहे वह निकृष्ट-से-निकृष्ट ही क्यों न हो, जो किसी एकको भी प्रिय न हो, पदार्थोंमें जो यह सुन्दरता, प्रियता और आकर्षण है, वह सब वास्तवमें परमात्मासे ही है, परंतु दीखता है पदार्थोंमें । यही माया शक्तिके आवरणकी विलक्षणता है । वस्तुतः पदार्थोंमें सुन्दरता, प्रियता और आकर्षण नहीं है । सारे पदार्थ उस परमात्मामें ही अध्यारोपित हैं और उस परमात्माका आनन्दस्वरूप ही मायाशक्तिके साथ मिला हुआ होनेसे पदार्थमात्रमें प्रियरूपसे अनुभूत होता है ।

अस्ति, भाति, प्रियकी एकता

संसारमें यावन्मात्र जो भी वस्तुएँ प्रतीत हो रही हैं, उनमें परस्पर भेद होनेपर भी अस्ति, भाति, प्रियरूपका उनमें एकरूपसे अनुभव हो रहा है । वस्तुगत भेद होनेपर भी अस्ति, भाति, प्रिय-तत्त्वका भेद नहीं है । वस्तुगत अस्तितत्त्व ही प्रतीत हो रहा है और वास्तवमें वही प्रियरूप है और भाति यानि प्रतीतिमात्रमें जो एक आनन्दकी अनुभूति होती है यही प्रियता है, वहाँ भी अस्तित्व तो है ही । जहाँ प्रियता है, वहाँ भी प्रतीति और अस्तित्व मौजूद ही हैं । अतः अस्ति, भाति, प्रिय‒ये तीनों कोई अलग-अलग विशेषण या शक्ति-विशेष नहीं हैं, किन्तु वह सच्चिदानन्दघन परमात्मा ही प्रकृतिको लेकर अस्ति-भाति-प्रियरूपसे प्रतीत हो रहा है । इसके अन्तर्गत दीखनेवाले नाम-रूप-आकारवाले संसारकी उपेक्षा करके इसके आधारस्वरूप सच्चिदानन्दघन परमात्माकी उपासना करनेसे साधक कृतकृत्य हो जाता है ।

सगुण-साकार-तत्त्व

वे निर्गुण-सगुण सच्चिदानन्दघन सर्वव्यापी पूर्णब्रह्म परमात्मा वास्तवमें जन्म-मृत्युसे सर्वथा रहित होनेपर भी जब आवश्यकता समझते हैं, तब अपनी दिव्य प्रकृतिको लेकर सगुण-साकाररूपसे प्रकट होते हैं (गीता ४ । ६) । वे परम दयालु भगवान् अपने प्रेमी भक्तोंका उद्धार करने, उनके इच्छानुसार उन्हें दर्शन देकर, उनके साथ लीला करके उन्हें परम आनन्दित करने, अपने दर्शन आदिके द्वारा लोगोंके समस्त पापोंका समूल विनाश करने, अपने दिव्य गुण, प्रभाव, नाम, रूप, लीला, तत्त्व और रहस्यका विस्तार करके उनके श्रवण, मनन, पठन, चिन्तन, कीर्तन आदिके द्वारा सम्पूर्ण लोगोंके लिये आत्मोद्धारका मार्ग खोल देने, दुष्ट-दुराचारी मनुष्योंकी बुरी आदत छुड़ाने और उन्हें दण्ड देकर अथवा मारकर पापोंसे मुक्त करनेके लिये लीला-विग्रह धारण करते हैं । 

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे