(गत ब्लॉगसे आगेका)
६९‒अपनी वेष-भूषा अपने देश और समाजके अनुकूल तथा सादी रखे ।
भड़कीले, फैशनदार और शौकीनीके कपड़े न पहने ।
७०‒इत्र, फुलेल, पाउडर और चर्बीसे बना साबुन,
वैसलिन आदि न लगाये ।
७१‒जीवन खर्चीला न बनाये अर्थात् अपने रहन-सहन,
खान-पान, पोशाक-पहनावे आदिमें कम-से-कम खर्च करे ।
७२‒शरीरको और कपड़ोंको साफ तथा शुद्ध रखे ।
७३‒शारीरिक और बौद्धिक बल बढ़ानेवाले सात्त्विक खेल खेले ।
७४‒जूआ, ताश, चौपड़, शतरंज आदि प्रमादपूर्ण खेल न खेले ।
७५‒टोपी और घड़ीका फीता,
मनीबेग, हैंडबेग, बिस्तरबंद, कमरबंद और जूता आदि चीजें यदि चमड़ेकी बनी हों तो उन्हें काममें
न लाये ।
७६‒सिनेमा, नाटक आदि न देखे; क्योंकि इनसे जीवन खर्चीला तो बनता ही है,
शौकीनी, अभक्ष्य-भक्षण, व्यभिचार आदि अनेक दोष भी आ जाते हैं,
इससे जीवन पापमय बन जाता है ।
७७‒बुरी पुस्तकों और गंदे साहित्यको न पढ़े ।
७८‒अच्छी पुस्तकोंको पढ़े और धार्मिक सम्मेलनोंमें जाय ।
७९‒गीता, रामायण आदि धार्मिक ग्रन्थोंका अभ्यास अवश्य करे ।
८०‒पाठ्य-अन्य अथवा धार्मिक पुस्तकोंको आदर-पूर्वक ऊँचे आसनपर
रखे । भूलसे भी पैर लगनेपर उन्हें नमस्कार करे ।
८१‒अपना ध्येय सदा उच्च रखे ।
८२‒अपने कर्तव्य-पालनमें सदा उत्साह तथा तत्परता रखे ।
८३‒किसी भी कामको कभी असम्भव न माने,
क्योंकि उत्साही मनुष्यके लिये कठिन काम भी सुगम हो जाते हैं
।
८४-किसी भी कामको करनेमें भगवान् श्रीरामको आदर्श माने ।
८५‒भगवान्को इष्ट मानकर और हर समय उनका आश्रय रखकर कभी चिन्ता
न करे ।
८६‒अपना प्रत्येक कार्य स्वयं करे । यथासम्भव दूसरेसे अपनी सेवा
न कराये ।
८७‒सदा अपनेसे बड़े और उत्तम आचरणवाले पुरुषोंके साथ रहनेकी चेष्टा
करे तथा उनके सद्गुणोंका अनुकरण करे ।
८८‒प्रत्येक कार्य करते समय यह याद रखे कि भगवान् हमारे सम्पूर्ण
कार्योंको देख रहे हैं और वे हमारे हितके लिये हमारे अच्छे और बुरे कार्योंका यथायोग्य
फल देते हैं ।
८९‒सदा प्रसन्नचित्त रहे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे |