(गत ब्लॉगसे आगेका)
९०‒धर्म-पालन करनेमें होनेवाले कष्टको प्रसन्नतापूर्वक सहन करे
।
९१‒न्याययुक्त कार्य करनेमें प्राप्त हुए कष्टको तप समझे ।
९२‒अपने-आप आकर प्राप्त हुए संकटको भगवान्का कृपापूर्वक दिया
हुआ पुरस्कार समझे ।
९३‒मनके विपरीत होनेपर भी भगवान्के और बड़ोंके किये हुए विधानमें
कभी घबराये नहीं, अपितु परम संतुष्ट और प्रसन्न रहे ।
९४‒अपनेमें बड़प्पनका अभिमान न करे ।
९५‒दूसरोंको छोटा मानकर उनका तिरस्कार न करे ।
९६‒किसीसे घृणा न करे ।
९७‒अपना बुरा करनेवालेके प्रति भी उसे दुःख पहुँचानेका भाव न
रखे ।
९८‒कभी किसीके साथ कपट,
छल, धोखाबाजी और विश्वासघात न करे ।
९९‒ब्रह्मचर्यका पूरी तरहसे पालन करे । ब्रह्मचारीके लिये शास्त्रोंमें
बतलाये हुए नियमोंका यथाशक्ति पालन करे ।
१००‒इन्द्रियोंका संयम करे । मनमें भी किसी बुरे विचारको न आने
दे ।
१०१‒अपनेसे छोटे बालकमें कोई दुर्व्यवहार या कुचेष्टा दीखे तो
उसको समझाये अथवा उस बालकके हितके लिये अध्यापक अथवा अभिभावकोंको सूचित कर दे ।
१०२‒अपनेसे बड़ेमें कोई दुर्व्यवहार या कुचेष्टा दीखे तो उसके
हितैषी बड़े पुरुषोंको नम्रतापूर्वक सूचित कर दे ।
१०३‒अपनी दिनचर्या बनाकर तत्परतासे उसका पालन करे ।
१०४‒सदा दृढ़प्रतिज्ञ बने ।
१०५‒प्रत्येक वस्तुको नियत स्थानपर रखे और उनकी सँभाल करे ।
१०६‒सायंकाल संध्याके समय भी प्रातःकालके अनुसार भगवान्के ‘हरे
राम’ मन्त्रकी कम-से-कम एक माला अवश्य जपे और जिसका यज्ञोपवीत हो गया हो,
उसको सूर्यास्तके पूर्व संध्या तथा कम-से-कम एक माला गायत्री-जप
अवश्य करना चाहिये ।
१०७‒अपनेमेंसे दुर्गुण-दुराचार हट जायँ और सद्गुण-सदाचार आयें,
इसके लिये भगवान्से सच्चे हदयसे प्रार्थना करे और भगवान्के
बलपर सदा निर्भय रहे ।
१०८‒अपने पाठको याद करके भगवान्का नाम लेते हुए सोये ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे
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