(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘सुहृदं सर्वभूतानाम्’ भगवान् प्राणी-मात्रके सुहृद् हैं । क्या प्राणी-मात्रमें
दुष्ट नहीं आते हैं ? उनके भी सुहद् हैं । उनका विनाश करना ही उनका कल्याण करना है
। धर्म-स्थापना भी कल्याण करना है । ‘पवित्राणां पवित्रं यः’ हैं भगवान् सबके लिये । ऊपरसे भगवान्की क्रिया दो तरहकी दिखती है । जैसे ‘लालने ताडने
मातुर्नाकारुण्यं यथाऽर्भके’ माता प्यार करती है तो हितभरे हाथसे थप्पड भी मार
देती है । तो बालकके ऊपर उसकी अकरुणा नहीं होती । ‘लालने ताडने मातुर्नाकारूण्यम्’‒अकृपा नहीं है । ‘तद्वदेव महेशस्य
नियन्तुर्गुणदोषयोः’ ऐसे ही गुण और दोषोंका नियन्त्रण करनेके लिये विनाश करके
कृपा करते हैं उनके ऊपर । कृपामें कोई फर्क नहीं । ऊपरकी क्रिया दो हैं । माँकी भी
पालन करनेकी और ताड़ना करनेकी क्रिया दो हैं; परन्तु हृदय एक है माँका । लालनमें भी हृदय वही । ताड़नामें भी
हृदय वही रहता है । जो पालन करनेमें और प्यार करनेमें हृदय रहता है वही मारनेमें है
।
परीक्षा करनी हो तो कोई माँ अपने बच्चेको मारती हो तो उस समय एक-दो चाँटा आप भी लगा दो । अरे !
क्या करता है ? तेरी मदद कर दूँ । अकेली मेहनत
करती है, थोड़ी सहायता कर दूँ । तो क्या माँ समझेगी कि मेरी सहायता
करता है ? लड़ेगी आपसे, कि क्यों मारता है मेरे छोरेको ?
तो तू क्या कर रही है ? वह मारनेके लिये थोड़े ही
मारती है, हृदयमें प्यार भरा है । वह मारती है दोष-नियन्त्रण करनेके लिये, निर्मल करनेके लिये । ऐसे ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’‒यह क्रिया दो तरहकी दीखती है; परन्तु इन सब क्रियाओंमें भगवान् वे ही
हैं वैसे ही हैं ।
गोस्वामीजी महाराज सुन्दरकाण्डमें लिखते हैं कि हनुमान्जी लंका गये तो वहाँ लोग कैसे हैं‒‘खर अज....भच्छहीं’ ऐसे राक्षस वहाँ रक्षा करते हैं । तो तुम इनका वर्णन
क्यों करते हो ? वे सब
भगवान्के हाथों मरेंगे, इस वास्ते हमने
संक्षेपमें कथा कही है । और कही है इसलिये कि भगवान्के हाथों
मरेंगे और भगवान्का सम्बन्ध हो जायगा । इनकी कथाके साथ भगवान्का सम्बन्ध है । नहीं तो राक्षसोंकी कथा क्यों कहते ? क्या मतलब है आपको ?
हमें इनसे मतलब नहीं, भगवान्से मतलब है । अब भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ लिया इसलिये
उनकी भी कथा कहनी है । उनकी कथामें भी भगवान्की कृपा,
भगवान्की दयालुता, भगवान्की विलक्षणता स्वतः ही प्रकट होती चली जायगी । तो अब वे उनके साथ क्रोध करें,
काम करें, लोभ करें, ईर्ष्या
करें, द्वेष करें, वैर करें, कुछ भी करें‒सम्बन्ध भगवान्से जुड़ जाता है । वह सम्बन्ध ही वास्तवमें कल्याण करनेवाला है,
क्योंकि गुणोंका संग जन्म-मरण देनेवाला है । तो ‘निर्गुणस्य गुणात्मनः’ सगुणको भी निर्गुण कहा‒गुणात्मा है वो, वह कल्याण करनेवाला है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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