(गत ब्लॉगसे आगेका)
वह लीला इसलिये करते हैं कि जिन सन्त-महात्माओंके लिये कुछ कहना-सुनना नहीं, वे भी
कथा कहते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथानि सर्वाणि तीर्थानि निवसन्ति
तत्र ।’ सब तीर्थ वहाँ निवास करते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथाप्रसंगः’
जहाँ भगवान्की उदार कथा होती है, वहाँ
सब तीर्थ आ जाते हैं तो पवित्रताकी महान् पवित्रता हो जाती है वहाँ । ‘पवित्राणां पवित्रं यो मंगलाना च मंगलम्’ भगवान्को कहते हैं‒पवित्रोंका पवित्र, मंगलोंका मंगल । ऐसे
भगवान्की कथा, उनके गुण, उनकी लीला, उनका स्वरूप, उनका तत्त्व
इनका विवेचन जहाँ होता है, वहाँ वह प्रयागराज माना है । ‘सर्वाणि
तीर्थानि निवसन्ति तत्र ।’
गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒‘संत समाज प्रयाग’,
जहाँ संत-संग होता है वहाँ प्रयागराज है । और कहते
हैं‒
राम भक्ति जहँ
सुरसरि धारा ।
सरसइ ब्रह्म
बिचार
प्रचारा ॥
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी ।
करम कथा रबिनदनि
बरनी ॥
जैसे त्रिवेणी है प्रयागराजमें तो भगवान्की भक्ति तो गंगाजीकी धारा है । और ‘बिधि निषेधमय कलिमल हरनी’ यह यमुनाजी है । यमुनाजीका जल
काला है और गंगाजीका जल स्वच्छ सफेद है तो भक्तिमें स्वच्छता दीखती है । विधि-निधेषमय; करनी काली दिखती है यह यमुनाजी है । सरस्वती
क्या है ? भीतर-ही-भीतर चलती है । ‘सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा ।’ जहाँ ब्रह्मका विचार-विवेचन होता है तो हर एक आदमी समझता ही नहीं । वह अन्तःसलिला सरस्वती
है । जहाँ तीनों ही चलती हैं, वह त्रिवेणी है ज्ञान, भक्ति और कर्मकी । इस वास्ते कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग
हैं । जहाँ समतामें स्थित हुए तो योग हो जाता है । और जहाँ योग (समता) नहीं, वहाँ केवल कर्म,
भक्ति, ज्ञान रहते हैं; परन्तु
यदि उनका सम्बन्ध भगवान्के साथ ही होता है तो वह योग होता है
। ऐसे कथा चलती है तो भगवान्की कथामें त्रिवेणी आ जाती है ।
प्रयागराज आ जाता है और जितने पार्षद हैं, वे आ जाते हैं । नारद
आदि भक्त आ जाते हैं । ‘पुष्करादि सरांसि च’ वे आ जाते
हैं । सब भगवान्की कथामें आ जाते हैं । तो भगवान्की कथा, भगवान् अवतार लेकर आते हैं, तब न करते हैं सभी । भगवान्का भक्तोंकी रक्षा करनेका
तात्पर्य है भक्तोंके धनकी रक्षा करना । भक्तोंका धन क्या है ? भक्तोंका धन भगवान् हैं । भगवान्की बात चले वही उनकी
रक्षा है और यही उनको धनी रहने देना है । उनका धन बढ़ाना है । उनकी रक्षा करनी है सब
तरहसे । और दुष्टोंका विनाश क्या है ? दुष्टताका विनाश करना शरीरके साथ वैर नहीं है
भगवान्का ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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