(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् इतने विलक्षण हैं कि ‘आत्मारामगणाकषीं’
नाम है भगवान्का । जो
‘आत्मारामगण’ हैं, जो परमात्मस्वरूपमें
ही नित्य रमण करते हैं, वे भी आकृष्ट हो जाते हैं भगवान्के गुणोंमें, भगवान्की लीलामें
। भगवान्के गुण सत्त्व, रज, तम नहीं हैं । ‘आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्थाः’
दोनों अर्थ हुए‒एक तो चिज्जडग्रन्थी-भेदन हो गयी और ‘निर्ग्रन्था-शास्त्रमस्मान्निवर्तन्ते’ जिससे ग्रन्थ भी निवृत्त
हो जाते हैं फल दे करके । ग्रन्थ अब क्या देगा ? ग्रन्थ तो मुक्ति देगा । वे मुक्त
हो गये । निर्ग्रन्था हैं तो भी ‘उरूक्रमे कुर्वन्ति अहैतुकीं
भक्तिम्’, बिना स्वार्थके, बिना
मतलबके भक्ति करते हैं । क्यों करते हैं बिना मतलब ? ‘इत्थं भूतगुणो हरिः’ भगवान् ऐसे ही हैं ।
अब करें क्या ? उस तरफ वे आकृष्ट हो जाते हैं । तो वे ऐसे गुण
हैं, ऐसी उनकी लीला । जिनको ‘निवृत्ततर्ष’
कहते हैं वे भी गाते रहते हैं, वे भी लीला करते रहते हैं ।
‘हरिश्शरणमित्येव येषां मुखे नित्यं वचः’ उनका वचन ही यह है ‘हरिः शरणम्’
शरण, आश्रय हमारा भगवान्का । तो वे क्या आश्रय लेंगे ? अब क्या लेना है उनको
? क्या मुक्ति करनी है ? क्या प्राप्त करना
है ? ऐसा न होते हुए भी भगवान्में लगे
रहते हैं । तो ऐसे सन्त-महापुरुष वे भगवान्की कथा सुनते हैं और सुनाते हैं । आपसमें कहते हैं तो उनके संगसे मात्र प्राणियोंका
उद्धार होता है । जहाँ सत्संग-कथा होती है, वहाँ सब तीर्थ आ जाते
हैं । जितने ऋषि-मुनि हैं वे सभी आ जाते हैं । गीताका पठन-पाठन होता है, वहाँ नारद, उद्धव आदि सब आ जाते हैं ।
तो उनके आनेसे वहाँका स्थल कितना पवित्र हो जाता है !
सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति
हृत्कर्णरसायना कथाः ।
तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति
॥
श्रेष्ठ पुरुषोंके संगसे भगवान्के प्रभावको वर्णन करनेवाली, भगवान्के प्रभावका ज्ञान करानेवाली, भगवान्के प्रभावको स्पष्ट बतानेवाली ‘हृत्कर्णरसायना कथाः’
हृदय और कानोंको रस देनेवाली कथा मिलती है । मानो कानोंमें ही श्रवणपुटसे पीते हैं, और हृदयमें प्रफुल्लित होते हैं, मस्त होते हैं । ऐसी
आनन्द देनेवाली कथा होती है जहाँ, वहाँ श्रेष्ठ पुरुषोंके संगमें व्यापार ही वही है
। उनके कथा-कीर्तन ही विषय हैं, उनका काम
ही यह है । तो ऐसे वे कथा करते रहते हैं । ‘सतां प्रसंगान्मम
वीर्यसंविदः, ‘भवन्ति हृत्कर्णरसायना
कथाः । तज्जोषणात्’ उनके सेवन करनेसे ‘आशु अपवर्गवर्त्मनि’ परमात्माकी प्राप्तिका जो अपवर्ग रास्ता
है उसमें श्रद्धा, रति, भक्ति, ‘अनुक्रमिष्यति’ सब हो जायगा । तो
यह सबका सब हो जाता है । इस वास्ते भगवान् लीला करते हैं । वह लीला अवतार लिये बिना
कैसे करे ? जिसको गा करके संसारके प्राणी अपना उद्धार कर सकें
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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