(गत ब्लॉगसे आगेका)
हम भजन-ध्यानमें
निरन्तर रहते थे, उस समय स्त्री बना लेती थी तो पा लेते । अब
बनाना पड़ता है, समय लगाना पड़ता है, इतना समय कौन निकाले ?’ आठ
पहरसे बनाते । ठाकुरजीके भोग लगा देवें और दोनों पा लेवें । ऐसे करते-करते लड़का मर गया । अब अकेले रह गये । वे तो अपने भजन करें, वैसे ही । लोग बहुत प्रेमसे आते थे दर्शन करनेके लिये । ये दर्शन करने आते
हैं न ? तो ठाकुरजीके दर्शन करते हैं; परन्तु
ठाकुरजीमें तो ठाकुरपना भक्तसे होता है । भक्त जब सेवा करता है, भावसे पूजन करता है तो ठाकुरजीमें विलक्षणता आ जाती है । हरेक दर्शकका चित्त
खिंच जाता है, दर्शन करनेको; क्योंकि श्रीविग्रहमें
ठाकुरजी आ गये विलक्षणतासे, उसके भावके कारणसे । लोग बहुत दर्शनोंके
लिये आया करते ।
पुजारीजीको हो गया बुखार । बुखारमें पड़े रहे । कुछ दिन बुखार आया । रात्रिमें उनके
प्राण चलने लगे । बाहरसे दरवाजा बन्द है । उस समय यह बात उनके मनमें आयी कि छोरा होता
तो सिर दबाता कम-से-कम । मस्तकमें पीड़ा हो रही है बहुत । क्या
करूँ मैं ? फिर मरने लगे तो सोचा, छोरा
पिण्ड तो देता कम-से-कम । अब पिण्ड और पानी
भी कौन देगा ? ऐसा सोचकर भजन करने लगे भगवान्का । भगवान् आ गये और गोदीमें ले लिया । घुटनोंपर सिर रख लिया उसका । छातीपर
हाथ, जिसमें पिण्ड लिया हुआ है । माथेपर हाथ रखा हुआ । छोरा बिना
सिर कौन दबायेगा ? तो मैं दबाऊँगा । पिण्ड कौन देगा ? मैं दूँगा । अब ठाकुरजी पिण्ड
देते हैं । सब काम करते हैं ठाकुरजी । काम करके राजी बहुत होते हैं ठाकुरजी । माताएँ
बच्चोंका पालन करती हैं । वही बच्चा एक दिन आप भाई लोगोंके हाथमें दे दिया जाय तो आठ
पहर भी नहीं रख सकते और वह पालन करती है । पालन करनेवालेके उकताहट नहीं होती । अगर
उकता जाय तो बच्चेका पालन कैसे हो ? पर वह उकताती नहीं है । पालन
कर लेती है । ऐसे ठाकुरजी भी भक्तोंका काम करते हुए उकताते नहीं । जैसे माँका उकताना
तो दूर रहा, माँको आनन्द आता है । बच्चा मर जाय तो बड़ी रोवेगी
। अरे ! रोती क्यों है ? तुम्हारी तो आफत मिटी । अब कुछ करना
ही नहीं पड़ेगा । यह सुनाओ उसको तो वह नाराज हो जायगी कि कैसे कहते हो ऐसे ? ऐसे ही
ठाकुरजी आफतसे राजी बहुत हैं । ठाकुरजी भी हमारा पालन करनेमें राजी बहुत हैं । प्रसन्न
होते हैं हमारा पालन करके, हमारी रक्षा करके । कितनी बड़ी आफत
करी है कितना बड़ा संसार रचा है । ‘एकाकी न रमते ।’
अकेलेका जी नहीं लगता । उनका मन नहीं लगता अकेलेका । इस वास्ते यह रोला मचाया है इतना
। इतना इकट्ठा किया है । मैं एक ही बहुत हो जाऊँ । ‘एकाकी न रमते ।’‒मन ही न लगे अब क्या करें ? इतना करके फिर सबका प्रबन्ध करते हैं,
पालन करते हैं, सब झंझट करते हैं भगवान् । पर करते
हैं भक्तोंके लिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे |