(गत ब्लॉगसे आगेका)
गरज क्यों करते हैं ? भगवान्के गुणोंसे आकृष्ट हो गये । ऐसे वो
दयालु ‘जिघांसयापाययत्’ मारनेकी इच्छासे स्तन पिलाया
। और ‘लेभे गतिं धात्र्युचिताम्’ तो जहर पिलाया मारनेके
लिये, मार तो उसको दिया, ‘यथा मां तथैव’ परन्तु अन्तमें भाव तो भगवान्का अपना रहेगा । वहाँ ‘तथैव’ प्रकारमें है
। व्याकरणमें ‘प्रकार वचने थाल्’ होता है । उसी प्रकारसे,
उसने स्तन दिया मुँहमें कि लाला दूध पी ले । अब दूध तो था नहीं,
वैरसे दूध कहाँसे आवे उसमें ? लाला खेंचने लगा
जोरसे तो प्राण खिंच गये । ‘मुञ्च-मुञ्च’, छोड़ छोड़ !’ छोड़े कौन ! छोड़ना भगवान्को आता
ही नहीं है । पकड़ना आता है । अभी क्या छोड़ दे, मरनेके बाद भी
नहीं छोड़ेंगे । छोड़ेंगे ही नहीं कभी । इनको बस पकड़ा दो, फिर मौज
करो, किसी प्रकारसे इसमें लगा दो ।
सम्बन्ध तो जोड़ दो तुम । फिर यदि उलटे-पुलटे हो भी जाओगे तो जन्म हो जायगा । भरतमुनिके हुआ, जैसे हो जायगा, नहीं तो ठीक हो जायगा । भगवान्का यह सम्बन्धमात्र है, यह बहुत विलक्षण है । इस बातके लोभसे सन्त-महात्मालोग एकान्तमें बैठकर ध्यान-भजन न करके सत्संग
आदि करते हैं । वहाँ एकान्तमें बहुत ठीक मन लगता है । उनका कोई मन न लगता हो,
ऐसी बात नहीं है । परवश होकर भजन करना पड़ता हो, ऐसी बात नहीं । इतना होते हुए भी सत्संग क्यों करते हैं ? कि इसमें लाभ बहुत
है । बहुत विलक्षण लाभ है । उनको लाभ क्या लेना है ? लेनेके लिये
थोड़े ही होता है । लाभ तो लाभ ही है । यह किसी तरहसे ही हो । लाभकी बात ऊँची बात है
। यह एक रिवाज छोड़ देते हैं । जिससे दुनियाका कल्याण होता ही रहे, होता ही रहे सदाके
लिये । कितनी विलक्षण बात है ! भगवान्में
किसी रीतिसे आप मन लगाओ, किसी रीतिसे, आपमें
जो शक्ति हो उसी रीतिसे और जो आपका सम्बन्ध हो, उसी सम्बन्धसे
। भगवान्को बाप मान लो, बेटा मान लो,
गुरु मान लो, चेला मान लो, कुछ भी मान लो । नौकर मान लो तो भगवान् नौकरी करेंगे । बेटा मान लो तो ठीक
बेटेका भाव रखेंगे ।
कलकत्तेके पास एक गाँव है उसकी एक बात सुनी थी । वहाँ
ठाकुरजीकी मूर्ति थी काठकी । कृष्णभगवान्की पूजा करते थे पुजारी । वहाँ पुजारी था, उनकी स्त्री थी, एक लड़का था, एक
गाय थी और एक बछड़ा था । पूजा करते थे । पूजा करते-करते बछड़ा मर
गया । गाय मर गयी । अब ठाकुरजीके रूखी-सूखी भोग लगावें । कहते
कि तुम्हारेको दूध और घी पाना था तो गायको मारा क्यों ? अब ठाकुरजीने
थोड़े ही मार दिया । हमारेको मिले जैसा भोग लगावेंगे हम तो । वैसे ही भोग लगाते । फिर
स्त्री मर गयी । अब कहा, ‘दोनों वक्त कौन रसोई बनावे ?
एक वक्त बनायेंगे । एक वक्त आप भी खाओ और हम भी खायेंगे । दो वक्त कौन
बनावे महाराज ?
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे |