(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक भौंरा था । वह घूमते-घूमते कमलमें जा बैठा । सुगन्ध आ रही थी खूब । इधर सूर्य अस्त हो
गया तो कमल बन्द हो गया । उसमें भौंरा विचार करता है कि हम बन्द हो गये अब । इसमेंसे
निकलें कैसे ? कमलको कैसे काटें ? भौंरा बाँसको काट देता है । बाँसमें छेद कर देता
है । उसमें छेद बनाकर बच्चे देता है और भीतर रहता है । आप विचार करो, कमलकी पंखुड़ी काटनेमें उसे जोर आता है क्या ? परन्तु उससे सुगन्ध लेता है तो
अब काटे कैसे ? वह भौंरा सोचता है‒‘रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम्
।’ रात चली जायगी, बड़ा सुन्दर प्रभात हो जायगा । ‘भास्वानुदेष्यति’ सूर्य भगवान् उदय होंगे और ‘हसिष्यति पंकजश्रीः’‒यह कमलकी शोभा खिल जायगी । फिर मर्जी आवे जहाँ बैठें, मर्जी आवे जहाँ जावें । फिर ठीक हो जायगा
। ‘इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे’‒वह बेचारा विचार कर रहा है कि यह हो जायगा, यह हो जायगा । इतनेमें ही हाथी आता है
। पानी पीता है, फिर सूँडसे कमलोंको ऐसे लपेटता है । उतनेमें
वह तो मर जाता है । ‘हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार’‒ऐसे ही मनुष्य कहता है, ऐसे करेंगे,
ऐसे करेंगे । क्या करेंगे ? राम नाम सत् है‒यह तो आ ही जायगा ।
सज्जनो ! हम मृत्युलोकमें बैठे हैं । यहाँ मरनेवाले रहते हैं सब । सबलोग
मरने-ही-मरनेवाले रहते हैं । इसमें निश्चिन्त
बैठे हैं । मरना सुनते हैं तो बुरा लगता है । मरनेकी बात बुरी लगती है । कोई कह दे तो, कहते हैं ना-ना
मुँहसे थूक । ऐसा मत बोलो । अब बोलो, चाहे मत बोलो, मरोगे तो सही । न बोलनेसे क्या रक्षा हो जायगी ? खरगोश
होता है न, तो जब शिकारी उसे मारने जाता है तो वह छिपकर आँखें
मीच लेता है । समझता है कि अब मेरेको कोई नहीं देखता; क्योंकि
खुदको दीखता नहीं । आँखोंको तूने मीची है, दुनियाने थोड़े ही मीच ली है, पर वह तो यही
समझता है कि अब थोड़े ही दीखूँगा मैं । ऐसे मनुष्य विचार करता है कि हमारा कौन कुछ करता
है ? आँखें तूने मीची है भाई ! काल भगवान्ने मीची नहीं है आँखें । ये सूर्य भगवान् सबको देखते हैं । देखनेका काम ये
करते हैं और ले जानेका काम इनके बेटा करते हैं । यमराज इनके बेटा हैं । सूर्य भगवान्
देख लेते हैं कौन कैसे-कैसे तैयार हुआ है । हाँ बेटा,
उसे ले आओ । तैयार है, बस । अपने निश्चिन्त बैठे
हैं, ऐसे नहीं सोचते कि वे हमारेको देख रहे हैं । छिप आप सकते नहीं । समय होनेपर छोड़ेंगे
नहीं ।
संतदास संसारमें बडो कसाई काल ।
राजा गिणे न बादशाह बूढ़ो गिणे न बाल ॥
न वह बूढ़ेको गिनता है, न बालकको गिनता है । बादशाह, साधु
सब एक समान, आ जाओ
बस ! आप कितने ही अच्छे पण्डित हो गये । बड़े अच्छे पण्डित हो,
चाहे मूर्ख हो, यहाँ तो एक ही भाव है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे |