(गत ब्लॉगसे आगेका)
घरमें चूहे बहुत हो जाते हैं तो तारोंका बना हुआ पिंजरा होता है उसमें रोटीके टुकड़े
डालकर अँधेरेमें रख देते हैं । चूहोंको अन्नकी सुगन्धि आती है तो वे देखते हैं कि रोटी
उसमें पड़ी है, पर किस तरहसे मिले ? इधर-उधर घूमते हैं । दरवाजा मिलते ही समझते
हैं, आहा ! निहाल हो गया मैं तो ! वह भीतरमें
भारसे नीचे उतरा और वह पत्ती स्प्रिंगसे वापस बन्द हो जाती है । तो अब मुश्किल हो गयी
। अब निकलनेका दरवाजा ढूँढता है, पर मिलता नहीं । बाहरवाले चूहे देखते हैं कि यह मौज
कर रहा है अकेला ही । हमारेको भी दरवाजा मिल जाय तो हम भी ऐसी मौज करें । अब दूसरा
चला गया तो बाहरके बचे हुए देखते हैं कि इनको रस आ रहा है । आपसमें एक-से-एक लूट रहे हैं तभी तो लड़ते हैं । यों करके फँस जाते
हैं । ऐसे ही संसारमें देखते हैं कि धन कैसे मिल जाय, हमारा विवाह
कैसे हो जाय, हमारे बच्चे कैसे हो जायँ ? धन भी हो जाय,
बच्चे भी हो जायँ । जब ब्याह होनेपर बच्चे होते हैं तो वह कहता है‒अब तो हम फँस गये, भाई । पर जिसका नहीं हुआ वह कहता है, मेरे
ब्याह ही नहीं हुआ । अब वह यों ही रोता है ।
जिसका ब्याह हो गया, वह मकान खोजता है कलकत्ते जैसे शहरमें । अकेला तो कहीं गद्दीमें
सो जाय, पर स्त्री-बच्चोंको अब कहाँ रखे
? मकानके लिये पगड़ी लाओ, मार आफत !
दूसरा देखता है मैं तो अकेला रह गया और यह मौज करता है । बाल-बच्चे हैं इसके तो । कोई ताऊ-चाचा कहते हैं और चीं-पीं करते हैं इसके सामने, तो बड़ा आनन्द आता है कि हमारे
इतने बच्चे हैं । बच्चोंके बीचमें बैठा राजी होता है जब कि वह दुःख पा रहा है । अब
मुश्किल हो गयी, पालें कैसे इनको ? अब ज्यों छोरा बड़ा हो गया
ब्याह करो । छोरी बड़ी हो गयी, उसका ब्याह करो । अब एक नयी आफत
और हो गयी ।
एक देश था, उसमें
रहनेवाले चौबेजी महाराजने सुना कि किसी देशमें चौबेको छब्बे कहते हैं । तो वहाँ चलो
हमारा नाम बढ जायगा । तो वे अपने गाँवसे निकले, दूसरा गाँव आया,
उसमें इनको दुब्बे कहने लगे । ‘चौबे होते छब्बे
होने चले जब, होय दुब्बे दूय गांठके खोये ।’ वहाँ दुब्बे हो गये । ऐसे विचार किया कि यहाँ यह सुख
लेंगे, तो जो पहले सुख था, वह भी गया । स्त्री-बच्चे नहीं थे तब बड़ी आजादी थी,
स्वतन्त्र थे, अब क्या करें ? फँस गये । अब निकलना मुश्किल हो गया मुश्किल, मुश्किल
कुछ नहीं है, स्वयं छोड़े तो कुछ मुश्किल नहीं है । चूहेके लिये
तो तारोंका पिंजरा दूजेका बनाया हुआ है, यह पिंजरा खुदका बनाया
हुआ है । दूजेका बनाया हुआ तोड़ना मुश्किल है । यह तो अपना बनाया हुआ है, इस वास्ते चट तोड़ा, चट चल दिया । पर तोड़ नहीं सकते ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे |