(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप हैं अविनाशी । अविनाशीको नाशवान् कैसे संतुष्ट करेंगे ? परन्तु वहम इतना विलक्षण पड़ा है‒‘राम-राम-राम ।’ कई बार
भोगोंको भोगकर देख लिया फिर भी उधर ही जाते हैं । अब क्या मनमें रह गयी ? क्या बाकी रह गया ? वहम है
कि अब सुख हो जायगा । आप नये हो गये कि पदार्थ नये हो गये, कि
रिवाज नया हो गया ? क्या बात है ? अभीतक चेत नहीं हुआ । समझदार
आदमी चेत जाता है कि रास्ता ठीक नहीं है । जो गया, वह भी इस तरहसे
ही मार खाता है । जो गया, वो ही दुःख पाया । अब उस मार्गको तो
छोड़ो भाई ! अपने भी कर लिया । इतने दिन हो गये, इतने वर्ष हो गये । और कौन-सा भोग नहीं भोगा ?
और फिर क्या मनमें रह गयी भगवान् ही जाने !
चेत होना चाहिये । छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, तब उनके विचार होता
है कि हम यह करेंगे वह करेंगे । बड़े होकर ऐसा धन कमायेंगे । तो आप लोग बड़े कब होंगे,
जिस दिन भजन करेंगे ? कब भगवान्में लगेंगे ?
कुछ बड़े हो जायँ तो फिर करेंगे । अब कब बड़े होंगे ? बताओ । मूर्खता रखते-रखते ही मर जायेंगे, वही बचपन, वही मूर्खता । तो ठाकुरजीमें आप अपना मन लगा
दो । सम्बन्ध जोड़ दो, किसी रीतिसे जोड़ दो । ठाकुरजीके साथ जोड़
लो । अब आप भगवान्को कुछ मान लो । कैसे ही मान लो । वैरी मान
लो, चाहे भयभीत हो जाओ । सम्बन्ध तो जोड़ो प्रभुके साथ !
भगवान् इतनी निगरानी रखते हैं जीवमात्रकी । यह किसीके साथ सम्बन्ध
जोड़ लेता है तो रहने नहीं देते । भगवान् तोड़ ही देंगे उसको । बालकपनके साथ रहे तो बालकपन तोड़ दिया । जवानीके साथ रहे
तो जवानी तोड़ देंगे । वृद्धावस्थाका साथ किया तो वृद्धावस्था तोड़ देंगे । रोगी-नीरोगी अवस्थाके सम्बन्धको तोड़ देंगे ।
भगवान् कहते हैं कि मेरेको नहीं प्राप्त किया तो टिकने नहीं
दूँगा तेरेको । तू चाहे कितना ही कुछ पकड़ ले, कितनी ही उछल-कूद करे तो क्या होगा ?
यह सब परिस्थिति बदलती है तो यह भगवान्का आवाहन
होता है कि इधर आओ, किधर जाते हो ? ये सुनते ही नहीं । थोड़ा धन
और कमा लें, थोड़ी विद्या और पढ़कर विद्वान् बन जायें । वक्ता बन
जायँ बढ़िया, लोग हमको वाह-वाह कहें । तो
फँस जाओगे बाबा ज्यादा । क्या निकालोगे इसमें ? पर वह भ्रम पड़ा
हुआ है कि मौज हो जायगी ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे |