(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रत्येक व्यक्तिको विचार करना चाहिये कि हमें कौन अच्छा लगता है ? जो भगवान्में,
उनके भजन-स्मरणमें लगाता है, वह अच्छा लगता है कि जो संसारमें लगाता है, वह अच्छा
लगता है ? जो वस्तु सदा साथ नहीं रहती, वह अच्छी लगती है कि जो सदा साथ रहती है, वह अच्छी लगती
है ? शरीर-संसार हमारे साथ नहीं रहते और
हम उनके साथ नहीं रहते । परन्तु धर्म हमारे साथ रहता है, ईश्वर
हमारे साथ रहता है, न्याय हमारे साथ रहता है, सच्चाई हमारे साथ रहती है । विचार करें कि हम सच बोलते हैं कि झूठ बोलते हैं
? हमें न्याय अच्छा लगता है कि अन्याय अच्छा लगता है ? ईमानदारी
अच्छी लगती है कि बेईमानी अच्छी लगती है ? हमें अन्याय अच्छा
लगता है तो उसका फल क्या होगा ? भोग अच्छे लगते हैं तो उसका फल
क्या होगा ? भोग भोगनेसे हमें लाभ हुआ है कि नुकसान हुआ है
? अपने जीवनको सँभाले और सोचें कि हम क्या कर रहे
हैं ? किधर जा रहे हैं ? हमें क्या अच्छा लगता है ? भगवान्का भजन अच्छा लगता
है कि संसार (भोग और संग्रह) अच्छा लगता
है ? संसार क्या फायदा करता है और भगवान् क्या नुकसान करते हैं ? पाप क्या फायदा करता
है और धर्म क्या नुकसान करता है ? विचार करें, देखें, सोचें‒
संसार साथी सब स्वार्थ के हैं,
पक्के विरोधी परमार्थ के हैं ।
देगा न कोई दुःख
में सहारा,
सुन तू किसी की मत बात प्यारा ॥
भजन-स्मरण करें तो घरवाले राजी नहीं होंगे । पर झूठ, कपट, बेईमानी करें तो घरवाले राजी हो जायँगे । विचार
करो कि वे आपके फायदेमें राजी होते हैं कि आपके नुकसानमें राजी होते हैं ? इस तरफ ध्यान दो कि आपका भला चाहनेवाले और भला करनेवाले
कौन-कौन हैं ? भगवान्ने हमें शरीर दिया है, पदार्थ
दिये हैं, पर सब कुछ देकर भी वे हमारेपर एहसान नहीं करते । परन्तु
संसार थोड़ा-सा काम करता है तो कितना एहसान करता है ? वह तो
अच्छा लगता है, पर भगवान् अच्छे नहीं लगते ! भगवान्ने शरीर दिया, आँखें दीं,
हाथ दिये, पाँव दिये, बुद्धि
दी, विवेक दिया, सब कुछ दिया, उनसे सुख पाते हैं और भगवान्को याद ही नहीं करते
! भगवान्से मिली हुई चीज तो अच्छी लगती है, पर भगवान् अच्छे नहीं
लगते । क्या यह उचित है ? स्वयं विचार करें । महाभारतमें आया है‒‘यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्
। विमुचते........॥’ ‘जिनको याद करनेमात्रसे संसारका जन्म-मरणरूप बन्धन छूट जाता
है ।’ भगवान्को याद
करनेसे ही संसारके दुःख छूट जाते हैं ! कुछ मत करो, कोई चीज मत दो, केवल याद करो तो भगवान् राजी हो जाते
हैं‒‘अच्युतः स्मृतिमात्रेण
।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
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