विचार करें, परमात्मा अपने हैं कि संसार अपना है
? हमें संसार प्यारा लगता है कि भगवान् प्यारे लगते हैं ? सदा हमारे साथ भगवान् रहेंगे कि संसार रहेगा ? हम परमात्माके अश हैं‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७)
। फिर हमें परमात्मा प्यारे न लगें, संसार प्यारा लगे‒यह क्या उचित बात है ? संसार तो हरदम हमसे दूर होता है, क्षणभर
भी हमारे साथ नहीं रहता और परमात्मा सदा हमारे साथ रहते हैं, क्षणभर भी दूर नहीं होते । परन्तु हमारी दृष्टि परमात्माकी तरफ नहीं है,
प्रत्युत संसारकी तरफ है । हम भगवान्के अंश हैं
तो हमें भगवान् प्यारे लगने चाहिये । परन्तु हमें परमपिता परमेश्वर इतने प्यारे नहीं
लगते, जितना संसार प्यारा लगता है । संसार साथ रहता नहीं और साथ
रहेगा नहीं, रह सकता नहीं । यह एक क्षण भी साथ नहीं रहता,
हरदम हमसे दूर हो रहा है । रुपये-पैसे,
मकान, स्त्री, पुत्र,
परिवार आदि कोई भी साथ रहनेवाला नहीं है और भगवान्का साथ छूटनेवाला नहीं है ।
शरीर-संसारका सम्बन्ध हरदम छूट रहा है । हमारी उम्रमेंसे जितने वर्ष बीत गये, उतना तो संसार छूट ही गया‒यह प्रत्यक्ष बात है, एकदम सच्ची तथा पक्की बात है । जिस क्षण जन्म हुआ, उसी क्षणसे शरीर-संसार हमसे दूर जा रहे हैं । संसारकी
प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण बदल रही है । परन्तु अनन्त युग भले ही बीत जायँ, भगवान् नहीं
बदलेंगे । वे कभी हमसे दूर नहीं होंगे, सदा साथ रहेंगे । हम सदा भगवान्के साथ हैं और भगवान् सदा हमारे साथ हैं । जो
शरीर एक क्षण भी हमारे साथ नहीं रहता, वह शरीर हमें प्यारा लगता
है और लोगोंकी दृष्टिमें हम भगवान्की तरफ चलनेवाले सत्संगी कहलाते
हैं ! विचार करें कि वास्तवमें हम सत्संगी हुए कि कुसंगी हुए
? हम सत्का संग करते हैं कि असत्का सग करते हैं ? हमें सत् प्यारा लगता है कि असत् प्यारा
लगता है ? कम-से-कम
इतनी बातकी तो होश होनी चाहिये कि संसार हमारा नहीं है ।
हम परमात्माके अंश होनेसे मलरहित हैं‒‘चेतन अमल सहज सुखरासी ।’ परन्तु संसारका संग करनेसे मल-ही-मल लगता है,
दोष-ही-दोष लगता है,
पाप-ही-पाप लगता है । संसारके संगसे लाभ कोई नहीं होता और नुकसान कोई बाकी नहीं रहता
। हम शरीरमें कितनी ममता रखते हैं, उसको अन्न-जल देते हैं, कपड़ा देते हैं, आराम
देते हैं, उसकी सँभाल रखते हैं, पर शरीर
हमारा बिलकुल कायदा नहीं रखता । रातको भूलसे भी शरीरसे कपड़ा उतर जाय तो शीत लग जाता
है, बुखार आ जाता है ! रोटी देनेमें एक
दिन देरी हो जाय तो शरीर कमजोर हो जाता है ! हम तो रात-दिन शरीरके पीछे पड़े हैं, पर यह हमारी परवाह नहीं करता,
हमारी भूलको भी माफ नहीं करता ! फिर भी शरीर हमें
प्यारा लगता है और सदा हमारा हित चाहनेवाले भगवान् और उनके भक्त प्यारे नहीं लगते
!
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
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