(गत ब्लॉगसे आगेका)
सब लोग अपने मतलबसे प्रेम करते हैं । बिना मतलब प्रेम करनेवाले
भगवान् और उनके भक्त ही हैं । अगर वे हमें अच्छे लगने लग जायँ तो हम सन्त बन जायँगे, ऊँचे बन जायँगे । परन्तु झूठ, कपट, बेईमानी, ठगी,
धोखेबाजी अच्छी लगेगी तो नीचे बन जायँगे । अपनी तरफ देखें कि क्या दशा
है ? सत्संग कितने वर्षोंसे कर रहे हैं और भगवान्के नजदीक कितने गये हैं ? विचार करें । रुपये कितने प्यारे
लगते हैं, पर चट हाथसे निकल जाते हैं । फिर भी हाय रुपया,
हाय रुपया करते हो ! रुपया आपको याद नहीं करता
। पर भगवान् आपको याद करते हैं, आपकी रक्षा करते हैं,
सहायता करते हैं । भगवान्के समान दूसरा कौन है ?
उमा राम सम हित जग माहीं ।
गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं ॥
(मानस, किष्किंधा॰ १२ । १)
भगवान्ने हमारा
कितना उपकार किया है, कितना उपकार करते हैं और कितना उपकार करेंगे
! भगवान्के समान हित करनेवाला कोई है ही नहीं,
हुआ ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं । हम भगवान्के लिये क्या करते हैं
? भगवान्को हमारेसे क्या स्वार्थ है ?
फिर भी वे हमसे प्रेम रखते हैं, हमारा हित करते
हैं । अगर हम सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जायँ तो निहाल हो जायँगे ।
नाम नाम बिनु ना रहे, सुनो सयाने लोय ।
मीरा सुत जायो नहीं, शिष्य न मुंड्यो कोय ॥
हम सोचते हैं कि हमारा बेटा हो जाय तो हम निहाल हो जायँगे, हमारा चेला बन जाय तो हम निहाल हो जायँगे
। परन्तु मीराबाईका न कोई बेटा हुआ, न उन्होंने कोई चेला बनाया,
पर आज कई पीढ़ी बीतनेपर भी लोग उनका नाम लेते हैं, उनको याद करते हैं । आपको तीन-चार पीढ़ीके नाम भी याद
नहीं होंगे ! मीराबाईमें एक ही विशेषता थी‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
।’ एक भगवान्को याद करनेसे
सब काम ठीक हो जाता है । लोक-परलोक दोनों सुधर जाते हैं । परन्तु भोगोंको याद करनेसे शरीर भी
खराब होता है, मन भी खराब होता है, आदत
भी खराब होती है, स्वास्थ्य भी खराब होता है । इसलिये हरदम भगवान्को याद रखो । यही सबका सार है ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे
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