मनुष्यमात्रमें तीन शक्तियाँ हैं‒करनेकी शक्ति,
जाननेकी शक्ति और माननेकी शक्ति । कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं कह
सकता कि मैं कुछ भी नहीं करता हूँ और करना चाहता भी नहीं हूँ;
मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ और जानना चाहता भी नहीं हूँ;
मैं कुछ भी नहीं मानता हूँ और मानना चाहता भी नहीं हूँ । मनुष्य
करता भी है और करना चाहता भी है, जानता भी है और जानना चाहता भी है,
मानता भी है और मानना चाहता भी है । अगर करना,
जानना और मानना‒इन तीनोंके साथ ‘योग’ लग जाय तो ये तीनों मुक्ति देनेवाले हो जायँगे । करनेमें योग
होनेसे ‘कर्मयोग’ हो जायगा, जाननेमें योग होनेसे ‘ज्ञानयोग’ हो जायगा और माननेमें योग होनेसे ‘भक्तियोग’ हो जायगा । योग तब होगा,
जब समता होगी‒‘समत्वं योग उच्यते’ (गीता
२ । ४८) । समताका मतलब है‒राग-द्वेष, हर्ष-शोक
न हो ।
एक विलक्षण बात है । ऐसा कोई मनुष्य है ही नहीं,
जो साधन न कर सके, परमात्माकी तरफ न चल सके । साधन करना चाहता नहीं,
परमात्माकी तरफ चलना चाहता नहीं‒यह बात अलग है । अगर वह चाहे
तो साधन कर सकता है । मनुष्ययोनि साधनके लिये ही मिली है
। यह साधनयोनि है, कर्मयोनि नहीं । दूसरी सब भोगयोनियाँ हैं ।
मनुष्यमें करनेकी एक शक्ति है,
आग्रह है । ‘ऐसा करके फिर क्या करें’‒यह
प्रश्र उठता है तो इससे मालूम होता है कि भीतरमें करनेका वेग है । करनेका यह वेग अपने
लिये कर्म करनेसे मिटेगा नहीं, प्रत्युत बढ़ेगा । कुछ भी अपने लिये किया जायगा तो करनेका वेग बढ़ेगा । करना और
पाना (यह करेंगे, इससे यह मिलेगा)‒ये दो चीजें रहेंगी तो कर्मयोग नहीं होगा,
कर्म होगा । करना दूसरोंके लिये होगा
तो करनेका वेग मिट जायगा अर्थात् करना बाकी नहीं रहेगा ।
संसारको जाननेसे जानना पूरा नहीं होगा । पढ़ाई करनेसे जानना पूरा
नहीं होगा । जानना पूरा होगा स्वयंको जाननेसे । स्वयं
मैं क्या हूँ‒इसको जबतक नहीं जानोगे, तबतक कितना ही जान लो,
कितना ही अध्ययन कर लो,
कितनी ही पढ़ाई कर लो,
कितनी ही लिपियाँ और भाषाएँ सीख लो,
कला-कौशल सीख लो, तरह-तरहके हुनर सीख लो,
पर जानना बाकी रहेगा । अपने स्वरूपको
ठीक तरहसे जान लो तो जानना बाकी नहीं रहेगा ।
संसारको, तरह-तरहकी चीजोंको मानते रहोगे तो मानना कभी पूरा नहीं होगा
। मानना पूरा होगा परमात्माकी माननेसे । परमात्मा माननेका
ही विषय है; क्योंकि माननेके सिवाय उसको जान नहीं सकते, देख
नहीं सकते, सीख नहीं सकते । अतः परमात्मा है‒ऐसा दृढ़तासे मान
लोगे तो मानना पूरा हो जायगा ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे
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