(गत ब्लॉगसे आगेका)
यहाँ रहते हुए भी आपसमें अच्छा बर्ताव
करना सीखें । दूसरोंकी आज्ञामें रहना‒यह उन्नतिका तरीका है
। आप ध्यान दें । दुष्टोंके परतन्त्र होनेसे तो आदमी दुःख पाता है; परन्तु जो सज्जनोंके परतन्त्र
होता है, वह स्वतन्त्र बनता है और
सुख पाता है । जितने बड़े-बड़े विद्वान् हुए हैं, वे बाल्यावस्थामें विद्वानोंके अधीन रहकर ही विद्वान् बने हैं । जितने संत-महात्मा
हुए हैं, अपने गुरुजनोंकी सेवा करके, उनके अधीन रहकर ही संत-महात्मा बने हैं । बड़े ऊँचे दर्जेके
महापुरुषोंने भी बचपनमें परतन्त्रताको स्वीकार किया है । सज्जनोंकी, हितैषियोंकी जो परतन्त्रता होती है, वह स्वतन्त्रताको देनेवाली होती है
। परन्तु जो अपनी इन्द्रियोंके और मनके वशमें होते हैं, वे परतन्त्र ही रहते हैं । उनको बार-बार
नरकोंमें जाना पड़ता है,
बड़े-बड़े कष्ट पाने पड़ते
हैं । इसलिये
इन्द्रियोंको तथा मनको वशमें करके अच्छे कामोंमें लगे रहना चाहिये । इन्द्रियोंके, मनके भोगोंके वशमें होनेसे अभी तो स्वतन्त्रता दीखती है, पर आगे परतन्त्रता आ जाती है‒यह स्वतन्त्रतामें भी परतन्त्रता
है । सज्जनोंकी परतन्त्रतामें भी स्वतन्त्रता है ।
अच्छे आचरण करो, अच्छे गुण सीखो, अच्छे भाव सीखो । अपने जीवनको सदा ही
पवित्र बनाओ । पवित्र बननेके लिये यह बड़ा ही सुन्दर मौका है; क्योंकि यह जगह पापी बननेके लिये नहीं
है, प्रत्युत शुद्ध बननेके लिये है ।
भगवन्नामकी बड़ी भारी महिमा है । एकनाथजी, तुकारामजी आदि जितने बड़े-बड़े संत-महापुरुष हुए हैं, उन्होंने नाम-जपकी बहुत महिमा गायी है । वह नाम-जप आप
करते रहो । भगवन्नाम लेनेके लिये आप परतन्त्र नहीं हो । काम-धंधा करते हुए भी भगवन्नाम
लेते रहो । चाहे राम, कृष्ण, गोविन्द, वासुदेव आदि कहो, चाहे विट्ठल-विट्ठल कहो । आपको भगवान्का
जो नाम प्यारा लगे, वह नाम आप लेते रहो ।
भगवान्के नामोंमें तो भेद
है, पर उनके फलमें भेद नहीं है । उनमें भी जिस नाममें आपकी अधिक रुचि हो, उसीका जप करें । इससे अधिक लाभ होता
है । मन लगाकर भगवान्के नामका जप करें । मन न लगे तो भी एक ऐसी आदत बना लें कि काम-धंधा करते
हुए भी नाम-जप होता रहे ।
संतोंने कहा है‒
हाथ काम मुख राम है, हिरदै साँची
प्रीत ।
दरिया गिरस्ती साध की, याही उत्तम रीत ॥
इस प्रकार यहाँ रहते हुए आप भी भगवान्का
नाम लेते रहें तो आप भी सन्त हो जायेंगे । स्वराज्य-प्राप्तिके लिये अच्छे-अच्छे लोगोंने
भी कैद भोगी थी; परंतु भोगी थी धर्मके लिये, पापोंके कारण नहीं । ‘कल्याण’ के सम्पादक श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार भी राजनैतिक कैदीके रूपमें जेलखानेमें रहे थे । वहाँ रहकर वे लोगोंको दवाइयाँ
वितरण किया करते और भजन-स्मरण किया करते थे । जेलमें उन्होंने लगभग दो हजार पुस्तकें
पढ़ी और नाम-जपका अभ्यास किया । वे अँगुलीपर नाम-जप किया करते और गिनतीके लिये लकड़ीसे
दीवारपर लाईन खींच देते । इस तरह उन्होंने खूब नाम-जप किया । अतः नाम-जपका अभ्यास करनेका यहाँ बड़ा ही सुन्दर मौका है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
|