(गत ब्लॉगसे आगेका)
सुख भोगनेसे तो पुण्योंका
नाश होता है और अपना स्वभाव बिगड़ता है, इससे पापोंके बीज बोये जाते हैं । परन्तु
दुःखमें तो लाभ-ही-लाभ होता है, नुकसान होता ही नहीं । जितना दुःख, कष्ट आता है, वह पुराने पापोंका नाश करता है और आगेके
लिये सावधान करता है ।
राजा प्रजाका माता-पिता होता है । वह
प्रजाका हित चाहता है । अतः आपके हितके लिये ही आपको यहाँ भरती किया है, जिससे आपके जीवनमें कोई दोष रहे ही नहीं, आप पवित्र बन जायँ । आप ऐसा
न समझें कि कैदखानेमें आकर हम पराधीन हो गये । इसको शिक्षालय समझें । यहाँ क्रियात्मक
शिक्षा दी जाती है । यह अपवित्र नहीं है । यहाँ भगवान् श्रीकृष्णने जन्म लिया था ।
इसलिये सभ्य लोग कारागारको ‘कृष्ण-जन्म-स्थान’ कहते हैं । कारागारमें अवतार लेकर भी भगवान् श्रीकृष्ण
कितने बड़े हो गये ? उनकी शिक्षा ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का विदेशीलोग भी आदर करते हैं । कोई भी आदमी अगर विद्वान्
होगा तो वह गीताका आदर जरूर करेगा ।
यहाँ आपकी बहुत बड़ी उन्नति
हो सकती है । यहाँ रहकर अच्छे काम करें, अच्छा बर्ताव करें । सबके साथ सेवाका
बर्ताव करें, आदरका बर्ताव करें, उनको सुख पहुँचानेका बर्ताव करें ।
यहाँ आप तरह-तरहके काम-धन्धे भी सीखते होंगे । उससे भी बहुत बड़ा फायदा होता है । एक विद्या आ जायगी, उस विद्यासे आप आगे कमाकर खा सकते हैं । मैं यहाँके कायदेसे
परिचित नहीं हूँ । मेरा और कई जगह जानेका काम पड़ा है । बीकानेरके कैदखानेमें देखा था
कि वहाँ बड़ी अच्छी-अच्छी दरियाँ, गलीचे आदि बनते हैं । ऐसी-ऐसी सुन्दर चीजें बनती हैं, जो विदेशोंमें भी जाती हैं । जब गंगासिंहजी महाराज बीकानेरके
राजा थे, तब वे एक बार इंगलैण्ड गये । वहाँ उन्होंने बहुत कीमत
देकर एक गलीचा खरीदा । वहाँसे वापस आकर उन्होंने बीकानेर-जेलमें गलीचा-बुनाईपर जो अफसर
था, उसको बुलाकर कहा कि ‘देखो, ऐसा गलीचा अपने यहाँ भी बुनवाओ । यह मैं इंगलैण्डसे लाया
हूँ ।’ गलीचा देखकर उसने बताया कि ‘अन्नदाता
! यह तो अपनी जेलका ही बना हुआ है, वहाँ जानेसे बड़ा कीमती हो गया । यह देखिये, अपनी जेलसे बने हुएका चिह्न ।’
यहाँ काम करनेमें तो आपको ऐसा लगता
है कि हम परवश होकर करते हैं; पर उसको भी अगर आप सीख लेंगे तो वह
विद्या आपके हाथ लग जायगी । उस विद्यासे आप जहाँ रहें, वहाँ काम कर सकते हैं । बड़े-बड़े धनी व्यापारियोंके यहाँपर
आप इकट्ठे होकर कहो कि हमें ऐसा-ऐसा काम आता है तो उनकी सहायतासे आप देशकी बड़ी उन्नति
कर सकते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
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